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महावीर का पुनर्जन्म
पुत्र ने पिता से कहा- 'पिताजी! आज मैं ऊंट पर जा रहा था तव अचानक उसकी नकेल टूट गई। मेरे साथ पड़ौसी का लड़का भी था । हम दोनों मुसीबत में फंस गए। हमारे पास दूसरी नकेल नहीं थी । मैंने उससे कहा- तुम अपनी जनेऊ दे दो। इससे नकेल बांध देंगे। एक बार काम चल जाएगा। पिताजी! वह लड़का इतना जिद्दी था कि दो घंटे के लिए भी जनेऊ देने के लिए तैयार नहीं हुआ।'
पिता ने कहा- 'यह क्या, इसका पिता भी ऐसा है। एक बार मेरा इसके पिता से काम पड़ा था। बात यह थी - तेरी बहन की शादी का प्रसंग था । ऐसा योग मिला—वह अकस्मात् बीमार हो गई। दूल्हा मंडप में पहुंच गया। मैंने उससे कहा- मेरी लड़की बीमार है। तुम एक बार उसके स्थान पर अपनी लड़की को बिठा दो । जब फेरे हो जाएंगे। तब वह वापस आ जाएगी। उसने मेरे इस कथन को सर्वथा अस्वीकार कर दिया ।'
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पुत्र बोला- 'पिताजी! फिर शादी कैसे हुई।'
'बेटा! क्या करता? शादी तो करनी ही थी । फिर तुम्हारी बहन के स्थान पर तुम्हारी मां को बिठा दिया ।'
ऐसी ही कहानी राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है । पुराने जमाने में छोटी-छोटी लड़कियों की बहुत शादियां होती थी । एक छोटी कन्या की शादी थी। फेरे का समय था रात्रि के एक बजे । कन्या को नींद आ गई। मां उसे उठाने के लिए आई। बेटी को कई बार झकझोरा । पर नींद नहीं टूटी। मां ने बहुत प्रयत्न से उठाया। बेटी ने पूछा- 'मां ! मुझे क्यों जगाया? मां ने कहा- 'बेटी ! तुम्हें फेरे खिलाने है ।' बेटी बोली- 'मां ! मुझे नींद आ रही है। फेरे तूं ही खा ले ।'
मनुष्य भी ऐसा ही कुछ करता चलता जा रहा है। जहां शरीर का दोष कारण है वहां पर भी मन का आरोपण कर देता है, जहां कर्म विपाक या भाव कारण है वहां भी मन पर दोष डाल देता है। एक लड़की नहीं उठ रही है तो उसके स्थान पर मां को बिठा दिया, दूसरी लड़की नहीं आ रही है तो मां को फेरे दिला दिए । यही मन के साथ हो रहा है। हम कर्म पर ध्यान नहीं देते, कर्म विपाक पर ध्यान नहीं देते, शरीर के दोषों पर, काल और ऋतुचक्र पर ध्यान नहीं देते। हम इन सबका उत्तरदायित्व केवल मन पर थोप देते हैं। हम कह देते हैं— मन ऐसा करता है, मन वैसा करता है। हम उसे उतना ही उत्तरदायी ठहराएं, जितना वह है । म प्रकृति से चंचल है, यह सच है, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता । शरीर स्थिर हो सकता है, मन और वाणी नहीं । मन एकाग्र हो सकता है, उसे किसी एक बिंदु पर टिकाया जा
सकता है ।
मन को टिकाना या निरोध ?
गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- 'भंते! मन को एक स्थान पर टिकाने से जीव क्या प्राप्त करता है।'
यह एक वास्तविक प्रश्न है। यह नहीं पूछा गया - मन का निरोध कैसे होता है? मन को एक आलंबन पर टिकाया जा सकता है। वह इतना चंचल अवश्य रहेगा। हम देखते है-गाय के बछड़े को खूंटे पर बांध दिया जाता है ।
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