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________________ ढक्कन व्रत के छेदों का ३६७ आचार्य ने फिर एक अर्थ बता दिया। कहा जाता है छह महीने तक श्रावक इस श्लोक का अर्थ पूछता रहा और आचार्य रत्नाकर सूरि उसके नए-नए अर्थ बताते रहे। कुण्डली श्रावक ने धैर्य नहीं खोया। वह बार-बार पूछता रहता—'महाराज! आप बड़े ज्ञानी हैं पर मैं तो अनपढ़ हूं, आप मुझे पुनः समझाएं।' । ऐसा करते-करते छह मास बीत गए। एक दिन आचार्य ने सोचा-मैं अर्थ क्या बताऊं? अनर्थ तो मैं स्वयं कर रहा हूं। सही अर्थ बताऊं कैसे? एकदम जागृति आई। उन्होंने निर्णय लिया-मुझे प्रतिक्रमण करना है। मैंने व्रत में छेद किया है। आचार्य के मन में यह भाव जागा और उन्होंने सही अर्थ बता दिया-'अनर्थ का मूल है अर्थ और जब तू अर्थ का संग्रह कर रहा है तो फालतू ही तप क्यों रहा है? साधना क्यों कर रहा है?' उसने कहा-'हा महाराज! आज आपने ठीक अर्थ बताया है, सही अर्थ बताया है। मैं कृतार्थ हो गया, धन्य हो गया।' जो केवल प्रातःकाल और सांयकाल किया जाता है, वही प्रतिक्रमण नहीं है। जब-जब ऐसा भाव आए तब-तब प्रतिक्रमण करें। बाईस तीर्थकरों के समय प्रतिक्रमण का जो नियम था, वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं था। दो बार प्रतिक्रमण करें। यह एक समयबद्ध और काल-प्रतिबद्ध विधान है किन्तु जब भी मन में असद्भाव आए, कोई बुरा भाव आए तो तत्काल प्रतिक्रमण करें-यह भाव क्यों आया? ऐसा भाव मेरे मन में क्यों पैदा हुआ? कई लोग आते हैं, अच्छे-अच्छे श्रावक आते हैं और कहते हैं-'महाराज! सामने बताने जैसी बात नहीं है किन्तु मेरे मन में बार-बार आत्महत्या करने की बात आती है। यह विचार क्यों आता ' कुछ व्यक्ति कहते हैं-'अमुक को मारने की बात मन में बार-बार आती है। आत्महत्या या परहत्या का विचार क्यों आता है?' सम्यक्त्व दीक्षा के समय यह त्याग कराया जाता है-मैं आवेशवश न आत्महत्या करूंगा और न परहत्या करूंगा। पर यह भाव क्यों आता है? यह भाव साधु के मन में भी आ सकता है। उसके कारण की खोज में चलना, अतीत में चले जाना, प्रतिक्रमण है। केवल वर्तमान से कार्य नहीं चलेगा। वर्तमान की पृष्ठभूमि में जो अतीत छिपा है, उसे खोजना होगा। अतीत की विशुद्धि से हमारा वर्तमान प्रभावित होता है, भविष्य प्रभावित होता है। एक भूत वह होता है, जिससे लोग डरते हैं। अतीत को भूत कहा गया है। अतीत का एक नाम भूत है। क्या इससे लोग कम डरते हैं? । व्रत की छतरी की सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण उपाय है-अतीत का प्रतिक्रमण। संताप से बचने का और ताप से मुक्त रहने का यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है। कहा जा सकता है-महावीर के साधना-सूत्रों में जो बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है, उनमें एक सत्र है प्रतिक्रमण। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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