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ढक्कन व्रत के छेदों का
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छेद कैसे रोकें?
ओजोन की छतरी को भरने के लिए अनेक उपाय खोजे जा रहे हैं। व्रत की छतरी के छेद को रोकने का उपाय बहुत ही पहले खोज लिया गया। उस उपाय का नाम है प्रतिक्रमण। यह एक ऐसा उपाय है, जिससे इस छेद को भरा जा सकता है।
गौतम ने पूछा-'भंते! व्रत में जो छेद हो जाता है, उसे कैसे रोका जा सकता है?' भगवान ने उत्तर दिया-'प्रतिक्रमण के द्वारा व्रत के छेदों को रोक दिया जाता है, भर दिया जाता है, व्रत की छतरी पूरी बन जाती है।' प्रतिक्रमण जैन दर्शन का पारिभाषिक शब्द है। अनेक बार यह प्रश्न उभरता है-प्रतिक्रमण क्या है? उसे हम रोज क्यों कर रहे हैं? मुनि के लिए दो बार प्रतिक्रमण करना अनिवार्य है-सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पूर्व श्रावक भी प्रतिक्रमण करते हैं। प्रतिक्रमण का विधान उनके लिए है, जिन्होंने व्रत की छतरी बनाई है। प्रतिक्रमण उस छतरी की सुरक्षा के लिए है। ओजोन की परत बने, छतरी बने
और टूट जाए, तो उसे रोकने के उपाय किये जाते हैं पर जब व्रत की छतरी ही नहीं बनाई गई, तो उसमे छेद ही कहा होगा?
___ एक मित्र अपने मित्र से बोला--'लाओ, वह छाता लाओ, जिसको मैंने पांच दिन पहले तुम्हें दिया था।'
'अभी क्या जल्दी है?' 'जिससे मैं छाता मांगकर लाया था, वह मांग रहा है।' 'तुम उसे समझा दो, वह तो अपना मित्र है।'
'नहीं ! वह छाता उसका भी नहीं है। वह किसी दूसरे से मांग कर लाया है। जिसने उसे छाता दिया था, वह छाते की मांग कर रहा है।'
एक को छाता दिया गया किन्तु वह उसका नहीं है, जिसने दिया, उसका नहीं है और जिससे मांगकर लाया, उसका भी नहीं है। किसी का अपना छाता है ही नहीं, पराया ही पराया है। जब छतरी ही नहीं है तो छतरी के टूटने का खतरा ही कहां है? जब छतरी बनाई ही नहीं पर कारी लगाए ही कहा? मूल ही नहीं है, तो शाखा कहां से होगी? किसी से पूछा-'अरे! बांझ का पुत्र कैसा है? गोरा है या काला?' उसने जबाव दिया- 'तुम मूर्ख हो। बांझ के बेटा होता ही नहीं है।' गोरे और काले का प्रश्न ही कहां है? यदि बेटा हो तो फिर बांझ क्यों? जब छतरी ही नहीं है तो फिर छेद का प्रश्न ही कहा है और छेद को रोकने की बात भी कहा है? आज कहा जाता है-संताप बहुत है, मानसिक तनाव बहुत है लेकिन तनाव क्यों है? कोई व्यक्ति अपने जीवन मे छाता ही नहीं बनाता है तो उसे ताप सहना ही पड़ेगा।
गर्मी का मौसम नहीं था. फिर भी एक महाशय छाता लिए जा रहे थे। मन में आया-इतना थोड़ा ताप है फिर भी छाता लिए जा रहे है? ताप को सहन करना नहीं चाहते, ताप में जाना नहीं चाहते। समस्या यह है-धूप से बचने के लिए छाता ताना जा रहा है, किन्तु जीवन में जो ताप आ रहा है,
उसके लिए छाता नहीं ताना जा रहा है। Jain Education International
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