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________________ ६३ ढक्कन व्रत के छेदों का आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं-तीन लाख वर्ष पूर्व इस आकाश में ओजोन की छतरी बनी। तब से इस पृथ्वी पर जीवों का अस्तित्व सामने आने लगा। यह पृथ्वी जीवों के रहने योग्य बनीं। उससे पहले पृथ्वी इतनी गर्म थी कि उस पर रहा नहीं जा सकता था। सूर्य की पराबैंगनी किरणें आती और उससे धरती गरमा जाती। जब ओजोन की छतरी बन गई तब सूर्य की पराबैंगनी किरणे छनकर आने लगी। पृथ्वी का तापमान संतुलित रहने लगा और पृथ्वी रहने लायक बन गई, किन्तु एक दिन पता चला कि अण्टार्कटिका महाद्वीप पर ओजोन की छतरी में छेद हो गया है और वह छेद भी अमेरिका जितना बड़ा है। सारे वैज्ञानिक घबरा उठे। उनका कहना है-इसका परिणाम बहुत भयावह होगा। कुछ ही वर्षों में तापमान बहुत बढ़ जाएगा। बर्फ पिघलने लगेगी। हिमालय पिघलने लगेगा। समुद्रों का जलस्तर बढ़ जाएगा, बड़े-बड़े नगर डूब जाएंगे। आज जहां चवालिस-पैंतालिस डिग्री तापमान है, वहां चौवन-पचपन डिग्री तापमान हो जाएगा। पृथ्वी पर रहना मुश्किल हो जाएगा। प्रश्न होता है इसका कारण क्या है? ओजोन की छतरी में छेद क्यों हुआ? इसके कारणों पर भी ध्यान दिया गया। आज नाइट्रोजन आक्साईड बहुत फेंका जा रहा है। वातावरण में कार्बन की मात्रा बहुत बढ़ रही है। प्रतिवर्ष लगभग ३,६२००० टन क्लोरोप्लाइड कार्बन आकाश में प्रक्षिप्त हो रहा है। इस स्थिति में छतरी कैसे नहीं टूटेगी? उसके टूटने के सभी कारण मानव की सुविधावादी और पदार्थवादी मनोवृत्ति से उपजे हैं। आधुनिक लोग समझते हैं-घर में रेफ्रीजरेटर है, सब चीजें ठंडी और ताजा रहती हैं, किन्तु यही रेफ्रीजरेटर बहुत बड़ा कारण बनता है ओजोन की छतरी के टूटने का। एक ओर चीजें ठंडी रहती हैं तो दूसरी ओर पृथ्वी इतनी गरमा रही है कि आदमी का रहना मुश्किल हो जाएगा। जीवाणुओं और कीटाणुओं को मारने के लिए स्प्रे किया जाता है। इससे ओजोन की छतरी को बड़ा खतरा पैदा होता है। आजकल सुपरसोनिक विमानों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये आकाश में धुआं उगलते चले जा रहे हैं। उनकी आवाज कहीं होती है और धुंआ कहीं दिखता है। ये भी ओजोन की छतरी को हानि पहुंचाते हैं। इस सुविधावादी और भोगवादी संस्कृति में इतने पदार्थ बन गए कि ओजोन की छतरी को खतरा ही खतरा हो रहा है। समुद्र में एक प्रकार की मछलियां होती हैं और मछलियों से एक प्रकार का तेल निकलता है। वह पदार्थ उस ओजोन की परत को सुरक्षित रखता है। उन मछलियों को भी बेतहाशा मारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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