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महावीर का पुनर्जन्म
करने के लिए, धार्मिक संबल पाने के लिए धर्मगुरु के चरणों में सपरिवार प्रस्तुत होती हैं। मैंने उनसे पूछा- 'तुम्हारे मन की क्या स्थिति रही?' उनका उत्तर बहुत ही मर्म को छूने वाला था। उन्होंने कहा-'हम जानती हैं कि कोई अशुभ कर्म का उदय आया इसलिए ऐसी दुर्घटना घटी, पति का देहावसान हो गया। यह हमारे लिए बहुत दुःखद स्थिति है किन्तु इसे सहन करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। यदि हम इसे रोकर सहेंगी तो कर्मों का प्रगाढ़ अर्जन होगा और वियोग के क्षण अधिक दुःखदायी बनेंगे। यदि हम शांति के साथ सहन करेंगी तो कम से कम नए कर्म नहीं बंधेगे। हमारा जीवन भी शांतिमय बना रहेगा।'
यह है कर्मफल के प्रति जागरूकता। वर्तमान युग के चिन्तन में बहुत परिवर्तन आया है। बहुत कठिन होता है ऐसी स्थिति को सहन करना किन्तु आज इस सन्दर्भ में सहिष्णुता बढ़ी है। ऐसा मानना चाहिए-यह धर्म का ही परिणाम है। अगर यह आलम्बन न हो तो दुर्घटना को भुला पाना संभव नहीं है।
धर्मश्रद्धा के दो परिणाम हैं-ज्ञान चेतना जागे, कर्म चेतना और कर्मफल की चेतना के प्रति जागरूकता बढ़े। जब ज्ञान की चेतना जागती है, हम कर्म के प्रति जागरूक बनते हैं, कर्मफल की चेतना के प्रति भी जागरूक बन जाते हैं। कर्म को कैसे भोगना, यह एक कला है। इसका मूल्य आंके, कर्मफल को भोगने का विवेक जगाएं। यह निश्चित है-जो किया है उसे भुगतना है। 'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि'-कत कर्मों से छुटकारा नहीं होता. उन्हें भगतना ही होता है किन्तु कैसे भुगतें? यह एक कला है। जो व्यक्ति इस कला को समझ लेता है, वह धर्म की कला को समझ लेता है।
रोटी बनाना एक कला है। चतुर महिलाएं या पाककला में दक्ष रसोइया बहुत कलापूर्ण ढंग से रोटी बनाता है किन्तु जो रसोइया कुशल नहीं होता, वह रोटी के साथ साथ हाथ का पूरा मैल भी उसमें डाल देता है। जो व्यक्ति फूहड़ होता है, वह कुशल रसोइया नहीं होता। जो व्यक्ति कर्मफल भोगने में जागरूक होता है, वह जीवन को सुन्दर बना लेता है किन्तु जो व्यक्ति कर्मफल भोगने में फूहड़ होता है, वह उसे भोगते समय नए कर्मों का संचय कर लेता है, अपने
आपको बंधन में जकड़ लेता है। वही व्यक्ति कर्मफल भोगने की कला को जानता है, जिसमें धर्म की श्रद्धा जाग जाती है और जिस व्यक्ति में धर्म की श्रद्धा जाग जाती है, वह व्यक्ति अच्छा कलापूर्ण जीवन जी सकता है। जीवन जीना एक बात है और कलापूर्ण जीवन जीना बिलकुल दूसरी बात है। जीवन सभी प्राणी जीते हैं पर कलापूर्ण जीवन वही जी सकता है जिसमें सही अर्थ में धर्म की श्रद्धा जाग जाए। धर्म की श्रद्धा संवेग का परिणाम है, यह तथ्य आत्मसात हो जाए तो सही जीवन जीने की दिशा उदघाटित हो जाए।
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