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संवेग से बढ़ती है धर्मश्रद्धा
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उसे अपनी भूल महसूस हुई और यह सत्यापित हो गया कि भरत क्यों मोक्षगामी है। कर्म विपाक का सन्दर्भ
धर्म श्रद्धा का परिणाम है, कर्म-फल के प्रति जागरूक होना। आदमी जो कार्य करता है, उससे बन्धन बंधता है। उसका फल भोगना होता है। जब कर्म का विपाक आता है तब दो स्थितियां बनती हैं। हम उदाहरण के द्वारा इस बात को समझें। मान लीजिए-पुण्य कर्म का विपाक आया। पुण्य कर्म के विपाक से सुविधा मिलती है, सुख मिलता है, प्रिय संवेदन होता है। धर्म श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति सोचता है-मैं पुण्य को ऐसे भोगूं, जिससे आगे वह पाप का कारण न बन पाए, मेरा पुण्य का भोग पाप के बंध का निमित्त न बने।
__गांधीजी से एक लड़के ने कहा- 'बापू! आप ऐसे कपड़े क्यों पहनते हैं? घुटने तक ऊंची घोती पहनते हैं। क्या आपके घर में कपड़ा नहीं है? क्या आपके कोई कपड़ा सीने वाला नहीं है? अगर नहीं है तो मेरी मां से आपके लिए एक ड्रेस सिलवा दूंगा।'
गांधीजी बोले-‘एक से क्या होगा?' 'नहीं, मैं दो बनवा दूंगा।' 'दो से क्या होगा?' 'मैं पांच बनवा दूंगा।' 'पांच से क्या होगा? मेरे लिए बीस करोड़ चाहिए।'
उस समय हिन्दुस्तान की आबादी बीस करोड़ थी। लड़का गांधीजी की तरफ देखता ही रह गया।
गांधीजी चाहते तो उन्हें सुन्दर से सुन्दर विदेशी कपड़ा मिल सकता था, किन्तु उन्होंने कभी उसकी आकांक्षा नहीं की।
_पुण्य के फल को न भोगना उसके प्रति जागरूक रहना है। जागरूक व्यक्ति सोचता है—मैं समर्थ हूं, पुण्यवान हूं, मुझे सारी सुविधाएं प्राप्त हैं, सारे भोग मिल सकते हैं पर मुझे उन्हें नहीं भोगना है। यह चिन्तन कर्मफल के प्रति जागरूकता से उपजा हुआ चिन्तन है। जिस व्यक्ति में धर्मश्रद्धा जागती है, वह व्यक्ति इस प्रकार का चिन्तन करता है।
दुसरा उदाहरण है पाप के विपाक का। जब व्यक्ति के जीवन में दुःख आता है, कठिन परिस्थितियां आती हैं, उस समय आदमी बेहाल हो जाता है। जिस व्यक्ति में धर्मश्रद्धा जागृत है वह ऐसी विकट स्थिति में भी जागरूक रहता है। वह सोचता है—मैंने कोई अशुभ कर्म किया था, उसका यह फल है। ऐसा नहीं हो, इसको भोगने में फिर नए कर्मों का बंधन हो जाए। कर्मफल की चेतना के प्रति जागरूक होने वाला व्यक्ति ऐसा चिन्तन कर दुःख की स्थिति को समभाव से सह लेता है। धर्म का परिणाम
ऐसे अनेक व्यक्ति आते हैं, जो किसी दुर्घटना से प्रभावित होते हैं। अनेक युवतियां छोटी अवस्था में विधवा हो जाती हैं। वे अपने वियोग को हल्का Jain Education International For Private & Personal Use Only
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