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धार्मिक होता है, जब धर्म की श्रद्धा जागती है और धर्म श्रद्धा तब जागती है जब व्यक्ति में संवेग उत्पन्न हो जाता है। संवेग जीवन का एक ऐसा मोड़ है, जो जीवन की दिशा को बदल लेता है। काल-लब्धि
मौसम में भी अनेक मोड़ आते हैं। राजस्थान में वैशाख और जेठ के महीने में भयंकर लूएं चलती हैं। मौसम में एक मोड़ आता है, कुछ वर्षा होती है। लू के स्थान पर ठंडी हवा चलने लग जाती है। जून के महीने में मानसूनी बादल केरल, कर्नाटक, बम्बई, पंजाब, दिल्ली होते हुए राजस्थान में प्रवेश करते हैं, वर्षा का मौसम शुरू हो जाता है। ग्रीष्मकाल बदला, वर्षा का काल आ गया। जैसे प्रकृति में मोड़ आता है, वैसे ही मनुष्य की चेतना में मोड़ आता है। मोड़ का कारण क्या है? मौसम बदलने का कारण क्या है? परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है-काल-लब्धि। काल-लब्धि निरन्तर अपना काम कर रही है। विश्व में जितना परिवर्तन होता है, उसमें एक मुख्य निमित्त बनता है काल। हम चाहें कितना ही पुरुषार्थ करें, जब तक काल-लब्धि का योग नहीं मिलता है तब तक बात बनती नहीं है।
केशी स्वामी से पूछा गया-'अगर आप सब आत्माओं को समान मानते हैं तो एक छोटा बच्चा बाण क्यों नहीं छोड़ सकता? यदि आत्मा समान है तो जैसे एक जवान आदमी बाण छोड़ सकता है, वैसे एक बालक और वृद्ध भी बाण छोड़ने में समर्थ होना चाहिए।' केशी स्वामी ने कहा-'इसमें काल-लब्धि का योग होता है। बच्चे का काल अभी पका नहीं है। जो बच्चा आज जन्मा, वह आज ही नहीं पक जाएगा।' छोटा बच्चा बड़ा होता है तो भी आश्चर्य होता है। कुछ दिन पहले आचार्यश्री दर्शन देने पधारे। हॉस्पिटल में एक तीन दिन के शिश को देखा। आचार्यश्री ने आश्चर्य से कहा-बच्चा तीन दिन में इतना बड़ा हो जाता है। गर्भ का एक काल होता है और विकास का एक काल होता है। यह नहीं हो सकता कि तीन दिन का बच्चा पचास वर्ष जितना बन जाए। विकास का एक कारण है काल-लब्धि। वह अपना काम करती है। व्यक्ति धीरे-धीरे बढ़ता है
और लगभग बीस-बाईस वर्ष तक बढ़ता चला जाता है। उसके बाद वृद्धि रुक जाती है।
काल-लब्धि का योग हर विषय में अपेक्षित रहता है। हम आज जो बीज बोते हैं, वह आज ही पेड़ नहीं बनता। काल का परिपाक आता है, बीज पेड़ का आकार ले लेता है। कहीं-कहीं काल-लब्धि का दूसरा प्रयोग भी होता है। चक्रवर्ती की खेती अलग प्रकार की होती है। वहां सुबह बीज बोया जाता है और शाम को फसल काट ली जाती है। विज्ञान भी अभी यहां तक नहीं पहुंच पाया है कि सुबह बोया जाए और शाम को पका कर खा लिया जाए किन्तु उसमें भी काल लगता है। कभी-कभी जीवन में काल का ऐसा परिपाक आता है, काल-लब्धि अभिव्यक्त होती है, संवेग जाग जाता है, धर्म की श्रद्धा जाग जाती है।
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