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महावीर का पुनर्जन्म
यह दूसरे नम्बर की बात है। पहले नम्बर की बात है-हम दृष्टि को साफ करें। ऐसा लगता है-आदमी का दृष्टिकोण सही नहीं है। सत्य के प्रति अनाग्रह का जो भाव विकसित होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। मूर्छा की सघनता के कारण असत्य के प्रति झुकाव जल्दी हो जाता है, सत्य के प्रति नहीं होता। आज के प्रातः काल एक ही दोहा सुना था
सत पतियाए ना पते, असत से पतियाय।
गली गली गोरस फिरे, मदिरा बैठी बिकाय।। असत्य से आदमी को जल्दी प्रतीति हो जाती है। सत्य के प्रति विश्वास नहीं होता, प्रतीति नहीं होती। इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं-यह स्वर कहीं-कहीं फूटता होगा किन्तु यह स्वर आम बना हुआ है-इणमेव असच्चं सद्दहामि पत्तियामि।
कवि ने बहुत सुन्दर उदाहरण दिया-ग्वाला ग्राम से दूध लेकर आता है। वह गली-गली में घूमता है, फेरी लगाता है। वह जोर-जोर से आवाज देता हुआ चलता है-दूध लो, दूध लो। उसको पांच-दस किलो दूध बेचने में भी बहुत विज्ञापन करना पड़ता है। शराब का ठेकेदार कभी फेरी नहीं लगाता, कहीं विज्ञापन नहीं करता। वह एक स्थान पर शराब का ठेका लगा लेता है। चाहे ठेका कितनी ही दूर हो, पीने वाला भटकता-भटकता वहां पहुंच जाता है। वह बिना बुलाए शराब की दुकान पर आ टपकता है। उसका न प्रचार होता है, न विज्ञापन। किन्तु शराब की दुकानों पर भीड़ लगी रहती है। विरल हैं दृढ़ सम्यक्त्वी
प्रश्न होता है-ऐसा क्यों? इसका कारण है—व्यक्ति के भीतर सहज ही सघन मूर्छा बनी हुई है। वह उसके दृष्टिकोण के सम्यक होने में बड़ी बाधा है। जब तक कषाय का अनुबंध शिथिल नहीं होता तब तक दृष्टिकोण के सम्यक होने की कल्पना नहीं की जा सकती। जब तक अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया
और लोभ विद्यमान हैं तब तक मूर्छा का एकछत्र साम्राज्य बना रहता है। सत्य उसके नीचे दब जाता है। व्यक्ति का ध्यान सीधा असत्य की ओर जाता है।
अनंतानुबंधी कषाय-तीव्रतम क्रोध मान, माया और लोभ व्यक्ति को मूर्छा की ओर, सत्य से असत्य की ओर ले जा रहा है। जब तक अनंतानुबंधी कषाय चतुष्क क्षीण नहीं होता तब तक सम्यग दर्शन प्राप्त नहीं होता । जब तक आत्मनिरीक्षण, आत्म-मंथन की चेतना नहीं जागेगी, सम्यग दर्शन की दिशा में प्रस्थान नहीं हो पाएगा। इसीलिए आचार्य भिक्षु ने कहा था-दृढ़ समकितधर थोड़ला।
ऐसे व्यक्ति विरल हैं, जो दृढ़ सम्यक्त्वी हैं। जिनकी दृष्टि विशुद्ध हो, केवल सत्यान्वेषी हो, वैसे व्यक्ति कितने हैं। अधिकांश व्यक्ति सम्यग दर्शन की प्राप्ति के लिए हाथ मलते ही रह जाते हैं ।
बादशाह ने बीरबल से पूछा-'मेरी हथेली पर बाल क्यो नहीं हैं?' बीरबल ने कहा- हुजूर! दान देते देते आपकी हथेली के बाल घिस गए।'
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