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महावीर का पुनर्जन्म अपस्मार और अतत्त्वाभिनिवेश
दो प्रकार की बीमारियां हैं-अतत्त्वाभिनिवेश और अपस्मार। अपस्मार का अर्थ है-स्मृति का विपर्यय। स्मृति का विपर्यय होना एक बीमारी है। जिस व्यक्ति में स्मृति का विपर्यय होता है, वह विपरीत दिशा में गति करता है। किसी से कहा जाए–'तुम्हें कल बम्बई जाना है।' वह इस बात को याद रखेगा और जाएगा भी लेकिन वह बम्बई के स्थान पर दिल्ली की ओर चला जाएगा। स्मृति का विपर्यय होने पर व्यक्ति की ऐसी स्थिति बन जाती है।
अतत्त्वाभिनिवेश में बुद्धि विपरीत बन जाती है। अतत्त्वाभिनिवेश से ग्रस्त व्यक्ति अनित्य को नित्य मान लेता है, नित्य को अनित्य मान लेता है, अहित को हित और हित को अहित मान लेता है। हित करने वाले व्यक्ति को अहित करने वाला समझ लेता है।
चरक के अच्छे टीकाकार हुए हैं चक्रपाणी दल्हन। उन्होंने इसकी व्याख्या में लिखा है-अतत्त्वाभिनिवेशो मानसो विकारःस च सर्वसंसारदुःखहेतुतया गद इत्युच्यते।
___ यह अतत्त्वाभिनिवेश एक मानस विकार है, बुद्धि का विकार है, जिससे सारी बुद्धि विपरीत बन जाती है, दृष्टिकोण गलत बन जाता है। यह अतत्त्वाभिनिवेश हमारे भीतर विपरीत बात का आग्रह पैदा कर देता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति किसी भी बात को सम्यक ग्रहण नहीं करता।
प्रसिद्ध कहानी है। शीतला मंदिर पर एक कौआ बैठ गया। उसने मंदिर पर बीट कर दी। देवी ने कहा- 'आज तो तुमने बड़ी ठंडी बीट की।' कौआ बोला- 'जा तू उसे रख, जो गर्म बींट करे। मैं यहां नहीं रहना चाहता।'
जिसमें अतत्त्व का अभिनिवेश होता है, वह हर बात को विपरीत ही लेता है। व्यक्ति का जिसके प्रति गलत दृष्टिकोण बन जाता है, उसकी अच्छी से अच्छी बात भी गलत लगती है। जिसके प्रति दृष्टिकोण अच्छा बना हुआ है, उसकी गलत बात भी अच्छी लगती है। असत्य की पकड़
मिथ्या अभिनिवेश का अर्थ है-असत्य की पकड़। आयुर्वेद की दृष्टि से यह एक रोग है। कर्मशास्त्रीय दृष्टि से यह एक मूर्छा है मूर्छा दर्शन को विकृत बना देती है। ज्ञान का काम है जानना। अज्ञान का काम है न जानना। अ एक आवरण है, एक पर्दा है। दर्शन का संबंध मूढता से है। मूर्छा व्यक्ति की चेतना को विकृत बना देती है। हम विकृत चेतना से जो जानेंगे, वह ज्ञान का आवरण हटने पर भी सही नहीं होगा। सूरज उगा हुआ है, आंखें साफ हैं पर धुंधलका छाया हुआ है। कुछ भी सम्यक् दिखाई नहीं देगा। राजस्थान में कभी-कभी भयंकर आधी आती है। उसे काली-पीली आंधी कहा जाता है। सारा आकाश धूलमय बन जाता है। वह आधी इतनी सघन होती है कि पांच मीटर की दूरी पर स्थित पदार्थ भी दिखाई नहीं देता। दिन रात जैसा दिखाई देने लग जाता है। ऐसी स्थिति में आंख और सूरज का प्रकाश-दोनों के होने पर भी पदार्थ का
सम्यग अवरोध नहीं होता। वातावरण में एक विकार पैदा हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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