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________________ ३७८ महावीर का पुनर्जन्म फिंकवा दिया। तुम्हारे पिता को इस बात का पता चला। उन्होंने तुम्हारी खोज कराई। वे तुम्हें पुनः राजमहल में ले आए। तुम्हारे शरीर के अंगूठे को पक्षियों ने नोच लिया था। तुम पीड़ा से चिल्ला रहे थे। तुम्हारे पिता ने पीप और लहू से भरे अंगूठे को अपने मुंह से चूस-चूस कर ठीक कर दिया।' चेलना ने आगे कहा-'जिस पिता ने तुम्हारे पर इतना उपकार किया है उसको तुमने कारवास में डाला है। तुमने उपकार का यह बदला चुकाया है?' __ यह बात सुनकर कोणिक की आंखें खुल गई। उसने सोचा-मैं अभी जाता हूं और पिता को कारागार से मुक्त करता हूं। वह स्वयं हाथ में हथियार लेकर पिताजी के बंधन काटने चल पड़ा। मां ने पूछा-'अब किसलिए जा रहा है?' कोणिक ने कहा-'पिताजी को मुक्त करने के लिए।' वह पिता के हित के लिए चल पड़ा। किन्तु श्रेणिक के मन में एक धारणा जम चुकी थी—कोणिक मेरा अहित ही करेगा। श्रेणिक ने कोणिक को हथियार लेकर आते हुए देखा। उन्होंने सोचा-इसे कारागार में डालने पर भी संतोष नहीं हुआ। वह हथियार लेकर मुझे मारने के लिए आ रहा है। इसके हाथ से मरने की अपेक्षा अपने आप मरना अच्छा है। उन्होंने अपने हाथ से अंगूठी निकाली। उसमें तालपुट विष था। उसे मुंह में डाला। दो क्षण में ही श्रेणिक की जीवन लीला समाप्त हो गई। यह है ज्ञान और दर्शन का अन्तर। जैसी धारणा बन जाती है, जैसा अभिनवेश हो जाता है आदमी वैसी ही बात सोचता है, वैसा ही चिन्तन करता एक और प्रसंग नन्दवंश का साम्राज्य बहुत प्रसिद्ध रहा है। उसका प्रधानमंत्री था शकडाल। वह बहुत बुद्धिमान था। उसके दो पुत्र थे-स्थूलभद्र और श्रीयक। श्रीयक के विवाह का प्रसंग था। महामंत्री ने सोचा-श्रीयक के विवाह पर मैं राजा को आमन्त्रित करूंगा। उस समय मुझे सम्राट को कुछ उपहार देना होगा। उन्हें क्षत्रियोचित उपहार देना ज्यादा उचित रहेगा। यह सोचकर उसने छत्र, चामर, कृपाण, त्रिशूल आदि अनेक प्रकार के शस्त्र और राजचिन बनवाने शुरू किए। शकडाल के विरोधियों को मौका मिल गया। वे महाराजा नन्द के पास पहुंचे। उन्होंने कहा-'महाराज! आज हम आपके पास एक विशेष प्रयोजन से आए हैं। जिस बात को लेकर आए हैं, उसे आप नहीं मानेंगे इसलिए हमारे में उसे कहने का साहस नहीं है। यदि उस बात को न कहें तो हम हरामखोर बनेंगे, आपके प्रति गद्दार बनेंगे। आपके साथ जो अन्याय हो रहा है, उसने हमें यहां तक पहुंचाया है।' ___ सम्राट यह सुनकर चौकन्ना हो गया। उसने पूछा-'क्या बात है?' उन्होंने कहा-'शकडाल अपने पुत्र के विवाह को निमित्त बनाकर विविध प्रकार के शस्त्रास्त्रों का निर्माण करा रहा है। वह उनके द्वारा आपको सत्ताच्युत कर अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठाने की तैयारी कर रहा है। वह दिन दूर नहीं है, जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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