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________________ ६१ दर्शन नहीं तो कुछ भी नही एक आदमी की आंख स्वस्थ है। वह प्रत्येक वस्तु को साफ-साफ देखता है। एक आदमी के आंख नहीं है। उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता। एक आदमी की आंख में जाला है। वह देखता है पर उसे साफ दिखाई नहीं देता। तीन अवस्थाएं हैं-आंख का ठीक होना, आंख का न होना और आंख का विकृत होना। किसी को पीलिया की बीमारी है, उसे सब कुछ पीला ही दिखाई देता है। कोई व्यक्ति काच-कामल का रोगी है तो उसे प्रत्येक वस्तु दो दिखाई देगी। वह चन्द्रमा को देखेगा तो उसे दो चन्द्रमा दिखाई देंगे और यदि अपनी एक अंगुली को देखेगा तो वे भी दो दिखाई देंगी। आंख की स्वच्छता, आंख का विकास और आंख का अभाव-ये तीन स्थितियां होती हैं। जैसी दृष्टि : वैसी सृष्टि बहुत बार समझाने का प्रयत्न किया-आखिर यह ज्ञान और दर्शन क्या है? आगम में कहा गया--नादंसणिस्स नाणं-दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। पहले दर्शन और फिर ज्ञान। दर्शन मिथ्या है तो ज्ञान मिथ्या है। दर्शन सम्यक् है तो ज्ञान सम्यक् है। इसका अर्थ है-ज्ञान दर्शन पर निर्भर है। पर दर्शन क्या है? ___ एक वह शक्ति है, जिसके आधार पर हमारी धारणाएं बनती हैं, मान्यताएं बनती हैं और एक वह शक्ति है, जिससे हम मानते हैं, जानते हैं। पहले धारणा फिर मानना या जानना। जैसी धारणा वैसा जानना या मानना। हमारे सामने एक सूत्र प्रस्तुत हो जाता है-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। यह तथ्य एक ऐतिहासिक घटना से अधिक स्पष्ट हो पाएगा। कोणिक ने अपने पिता सम्राट श्रेणिक को कारगार में कैद कर दिया। यह राजतन्त्र का पुराना इतिहास है, कोई नई घटना नहीं है। राजाओं में ऐसा होता आया है। जिस पुत्र के मन में राज्य हथियाने की बात आ जाती, वह अपने पिता को कैद कर कारागार में डाल देता। कोणिक के इस कार्य का विरोध भी बहुत हुआ। महारानी चेलना को इस बात का पता चला। उसने पुत्र से कहा- 'तुझे पता नहीं' तुम्हारे पिता ने तुम्हारे पर कितना उपकार किया था। जब तुम गर्भ में थे तब मुझे दोहद उत्पन्न हुआ। मेरे मन में तुम्हारे पिता के कलेजे का मांस खाने की इच्छा पैदा हुई। मैं उस इच्छा को बताना नहीं चाहती थी। उनके बार-बार आग्रह करने पर मैंने अपने दोहद की बात उन्हें बताई। उन्होंने मेरी इस इच्छा को पूरा किया। जब तुमने जन्म लिया तब मैंने सोचा-जो लड़का गर्भ में ही पिता के कलेजे का मांस खाने की इच्छा करता है, न जाने वह आगे जाकर क्या करेगा? मैंने यह चिन्तन कर तुम्हें बाहर अकूरड़ी (कूड़े का ढ़ेर) पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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