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________________ ३७४ महावीर का पुनर्जन्म रूखा-सूखा खाना खाएं, मैं क्यों खाऊं? मुझे रूखा-सूखा भोजन करने की आवश्यकता क्या है?' रुचि की जागृति आवश्यकता से जुड़ी हुई है। मन को बलवान बनाना, भावनाओं को स्वस्थ बनाना अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी है। जब तक यह बात समझ में नहीं आती, धर्म के प्रति रुचि जागृत नहीं होती। जब यह बात समझ में आती है, व्यक्ति की रुचि बदल जाती है। रुचि के दस प्रकार जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते हैं, कुछ मोड़ ऐसे आते हैं, जीवन की दिशा बदल जाती है। व्यवहार और आचरण में परिवर्तन श्रद्धा या रुचि के बदलने पर ही संभव बनता है। जब तक रुचि नहीं बदलेगी, श्रद्धा नहीं बदलेगी तब तक मान्यता और धारणा नहीं बदलेगी, व्यवहार और आचरण नहीं बदलेगा। भगवान महावीर ने इस तथ्य पर सर्वाधिक बल दिया। उन्होंने बहुत स्पष्टता से कहा-सबसे पहले श्रद्धा या रुचि पर ध्यान दो। चारित्र और व्यवहार के परिवर्तन की बात उसके बाद में है। पहले यह देखना जरूरी है कि व्यक्ति की रुचि किससे जुड़ी हुई है। यदि उसकी रुचि पदार्थ से जुड़ी हुई है तो वह अपदार्थ की बात कैसे समझ पाएगा? पहले अपदार्थ के प्रति, आत्मा के प्रति रुचि पैदा होना आवश्यक है। आगम में रुचि के दस प्रकार बतलाए गए हैं निसग्गुवएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव। अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुई।। १. निसर्ग-रुचि ६. अभिगम-रुचि २. उपदेश-रुचि ७. विस्तार-रुचि ३. आज्ञा-रुचि ८. क्रिया-रुचि ४. सूत्र-रुचि ६. संक्षेप-रुचि ५. बीज-रुचि १०. धर्म-रुचि निसर्ग-रुचि : उपदेश-रुचि रुचि का एक प्रकार है निसर्ग-रुचि। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनमें सहज रुचि होती है। उनके मन में अपने आप तत्त्व के प्रति रुचि जाग जाती है, आत्मा के प्रति श्रद्धा जाग जाती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनमें सहज रुचि नहीं होती। उनमें रुचि को पैदा किया जाता है। प्रयत्न से रुचि पैदा हो जाती है। इसलिए सामान्यतः रुचि दो भागों में बंट जाती है-निसर्ग-रुचि और उपदेश-रुचि। कुछ लोग सहज शांत रुचि लेने वाले होते हैं। वे लड़ाई में रस नहीं लेते, बातों में रस नहीं लेते, निन्दा-चुगली में रस नहीं लेते। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनमें रुचि को जगाना पड़ता है। स्वाध्याय, उपदेश, प्रवचन, धर्मकथा-ये सब रुचि को जगाने के प्रयत्न हैं। यदि सारे व्यक्ति निसर्ग-रुचि बन जाएं तो उपदेश देने की कोई जरूरत नहीं है। रुचि को जगाने के लिए प्रयत्न करना होता है। कुछ दिनों से आगम स्वाध्याय का एक क्रम चल रहा है। अनेक व्यक्तियों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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