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बिम्ब एक : प्रतिबिम्ब अनेक
३७१ निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। व्यक्ति को लड़ाई करने में जितना रस है, लडाई देखने में जितना रस है, उतना रस लडाई न करने में नहीं है। गाली देने में जो रस है, वह गाली न देने में नहीं है। क्रोध करने में जो रस है, वह क्षमा करने में नहीं है।
हमारा रस किसी दूसरे स्थान से बंधा हुआ है। यदि किसी व्यक्ति से कहा जाए–'तुम एक घंटा तक आत्मा के बारे में चर्चा करो, आत्मा के विषय पर विमर्श करो।' वह इस प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं होगा। यदि सुनने के लिए तैयार हो भी जाए तो वह ध्यान से नहीं सुनेगा, आधी नींद के साथ सुनेगा। उस व्यक्ति से कहा जाए–'आज टी.वी. पर ऐसा दृश्य. आने वाला है, जिसमें युद्ध का वर्णन है, लड़ाई के रोमांचक दृश्य हैं।' वह व्यक्ति इस बात को ध्यान से सुनेगा, टी.वी. पर आने वाले उस कार्यक्रम को बहुत गौर से देखेगा। उस समय उसे ऐसा अनुभव होता है कि दुनिया में नींद नाम की कोई चीज ही नहीं है। टी.वी. देखते समय या सिनेमा देखते समय कौन व्यक्ति नींद लेता है? उस समय आती हुई नींद भी उड़ जाती है। ऐसी स्थिती में कोई व्यक्ति नींद ले, यह अपवाद ही हो सकता है।
राजलदेसर के एक तत्वज्ञ श्रावक हुए हैं श्री चांदमलजी बैद। वे तत्त्व-चर्चा में सारी रात जगा देते, उन्हें नींद नहीं आती। सिनेमा देखना उनकी रुचि का विषय नहीं था। वे उसे निकम्मा कार्य समझते थे। वे प्रायः सिनेमाघर नहीं जाते थे। कभी कोई व्यक्ति उन्हें आग्रह करके सिनेमाघर में ले जाता तो वे नींद लेकर अपना समय पूरा करते। इधर फिल्म चलती रहती उधर वे नींद लेते रहते।
एक व्यक्ति धर्म की बात सुनते हुए नींद लेता है और एक व्यक्ति फिल्म देखते हुए नींद लेता है। इसका मतलब है-व्यक्ति का कार्य रुचि से जुड़ा होता है। जहां रुचि होती है, वहां नींद नहीं आती। जहां रुचि नहीं होती, वहां नींद आती है। यदि धर्मकथा सुनने में नींद आती है तो मान लेना चाहिए, धर्म की रुचि अभी जागृत नहीं हुई है। उपाध्याय यशोविजयजी ने बहुत अच्छा लिखा है
चतुरशीतावहो! योनिलक्षेष्वियं, क्व त्वयाऽऽकर्णिता धर्मवार्ता। प्रायशो जगति जनता मिथो विवदते, ऋद्धिरससातगुरुगौरवार्ता।
आश्चर्य है! इस चौरासी लाख परिमित जीवयोनि में तूने धर्मवार्ता कहां सुनी? इस जगत् में प्रायः जनता ऋद्धि, रस और सुख के गुरु-गौरव से पीड़ित बनी हुई परस्पर विवाद कर रही है। चर्चा के मुख्य विषय
ऋद्धि, रस और सात–इन तीन विषयों में मनुष्य का रस है, आकर्षण है। ऋद्धि की चर्चा, धन की चर्चा चारों ओर है। व्यक्ति बाजार में चला जाए, पंचायत में चला जाए, कहीं भी चला जाए, धन चर्चा का विषय बन जाएगा। एक व्यक्ति कहता है-अमुक व्यक्ति लखपति है। दूसरा व्यक्ति कहेगा-नहीं, उसके पास इतना नहीं है। एक व्यक्ति कहेगा-तुम्हें पता नहीं, अमुक व्यक्ति के दिवाला
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