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महावीर का पुनर्जन्म
रूपान्तरण का क्षण
कौशल नरेश बहुत दयालु था, कृपालु था । वह प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करता था । प्रजा को सुखी बनाए रखने का प्रयत्न करता रहता था । काशी - नरेश प्रजा के प्रति बहुत क्रूर था। उसमें करुणा नहीं थी। जो करुणाशाली होता है, दयालु होता है, उसका यश फैलता चला जाता है। काशी नरेश ने सोचा - कौशल नरेश की कितनी ख्याति है, कितनी महिमा है, मुझे कोई पूछता ही नहीं है । मन में ईर्ष्या जाग गई। उससे रहा नहीं गया। सेना को इकट्ठा किया और कौशल पर आक्रमण कर दिया। काशी नरेश पूरी तैयारी के साथ युद्ध के लिए आया था। कौशल नरेश सजा हुआ नहीं था। उसके कोई तैयारी नहीं थी । आकस्मिक आक्रमण हुआ था । उसने सोचा- मैं जीतने में समर्थ नहीं हूं। सैनिक मरेंगे, मेरी प्रजा का संहार होगा। ऐसा होना अच्छा नहीं है। उसने एक निर्णय लिया और राज्य छोड़कर जंगल में चला गया ।
काशी नरेश कौशल का अधिपति बन गया । उसने राज्य पर अपना प्रभुत्व जमा लिया पर जनता के दिलों पर उसका राज नहीं बन सका । जनता कौशल नरेश को ही याद करती, उसका ही यश और महिमा बखानती । काशी नरेश ने सोचा- मैं राजा बन गया फिर भी जनता मुझे नहीं चाह रही है । मुझे क्या करना चाहिए, जिससे जनता मुझे चाहने लगे। उसने अनेक उपाय किए पर वह जनता के दिल से कौशल नरेश का स्थान हटा नहीं सका ।
उसने सोचा- जब तक कौशल नरेश जीवित रहेगा, जनता मुझे नहीं चाहेगी। अच्छा यही है- मैं कौशल नरेश को मरा दूं। काशी नरेश ने राजसभा में घोषणा कर दी - जो व्यक्ति कौशल नरेश को जीवित या मृत मेरे सामने प्रस्तुत करेगा, उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार में दी जाएगी।
शासक लोग विचित्र होते हैं । उनका अपना एक अलग ही दृष्टिकोण होता है । इसी वर्ष (सन् १६८६) चीन के शासकों ने आजादी की मांग कर रहे सैकड़ों छात्रों को भून डाला। उनके शांतिपूर्ण अभियान को हिंसा से कुचल दिया। सत्तासीन व्यक्तियों का दृष्टिकोण उनकी क्रूरता से उपजता है ।
लोग चारों तरफ दौड़ पड़े। धन के लिए आदमी सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाता है । जैसे-तैसे कौशल नरेश को पकड़ें और पुरस्कार जीतें। कौशल नरेश जंगल में घूम रहे थे। उनका आकार-प्रकार - सब कुछ बदला हुआ था । इस स्थिति में उन्हें पहचानना मुश्किल था। कौशल नरेश बदले हुए वेश में घूम रहे थे। उधर एक परदेसी व्यक्ति आया। उसने कौशल को नमस्कार कर पूछा- 'भाई! मुझे कौशल नगर जाना है। मैं कौशल की राजधानी का रास्ता नहीं जानता। क्या तुम मेरा सहयोग करोगें ?"
कौशल नरेश ने कहा - ' बता दूंगा।' दोनों साथ हो लिए। बातें चल पड़ीं। परेदशी बोल – 'भैया! क्या बताऊं? मैं बड़ा दुःखी हूं। मैं व्यापारी था। अपने देश से जहाज में सामान लेकर व्यापार के लिए चला। मार्ग में तूफान आया। जहाजें टूट गई, नौकाएं टूट गई, सारा धन चला गया।'
कौशल नरेश ने पूछा - ' भाई ! तुम कौशल क्यों जा रहे हो?"
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