________________
उपयोगितावाद
३६७
कारण है प्रमाद। आकांक्षा और चाह में डूबा आदमी अपने चैतन्य की विस्मृति कर देता है। चौथा कारण है-आवेश। जहां विस्मृति है, वहां आवेश न आए, यह कभी संभव नहीं है। प्रमाद की स्थिति में आवेश आएगा, कषाय को खुलकर खेलने का अवसर मिल जाएगा, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि से व्यक्ति घिर जाएगा। पांचवां कारण है चंचलता। आवेग और आवेश व्यक्ति को चंचलता से भर देता है। अस्तित्व का अंकुर फूटे
__ बन्धा हुआ व्यक्तित्व, असंतुलित व्यक्तित्व पांच भागों में बंट जाता है-मिथ्या दृष्टिकोण का व्यक्तित्व, आकांक्षा का व्यक्तित्व, प्रमाद का व्यक्तित्व, कषाय का व्यक्तित्व और चंचलता का व्यक्तित्व। इस सन्दर्भ में अस्तित्व की बात, आत्मा को देखने और समझने की बात कितनी सार्थक है? पचास बार कहा जाए-आत्मा को देखो। क्या उस ओर प्रस्थान हो जाएगा? पत्थर पर पानी की बूंदें गिरती हैं पत्थर कभी पसीजता नहीं। यदि मिट्टी पर पानी की बूंदें गिरती हैं तो मिट्टी पसीज जाती है, गीली हो जाती है, अंकुर फूट पड़ता है। मिथ्या दृष्टिकोण ने हमारे व्यक्तित्व को पत्थर की भांति कठोर बना दिया है। उस पार पानी की बूंदें गिरती हैं, लुढ़क कर नीचे चली जाती हैं। हमारा व्यक्तित्व पसीजता नहीं है, अस्तित्व का अंकुर फूटता नहीं है। लोहे के गर्म तवे पर पानी की बूंद गिरती है, एक आवाज होती है और उसका कहीं पता ही नहीं चलता।
हमारे व्यक्तित्व की यह एक विचित्र स्थिति बनी हुई है। इस स्थिति में बन्धन के सघन चक्रव्यूह को तोड़ना बहुत कठिन है, पर यह निराश होने की बात नहीं है। अज्ञान से आदमी ज्ञान की दिशा में आता है, स्थिति बदल जाती है। बन्धन का एक मार्ग है तो मुक्ति का भी एक मार्ग है। मुक्ति का मार्ग है-निरोध और विशोधन। इनके द्वारा बन्धन के चक्रव्यूह को तोड़ा जा सक है। दो दृष्टिकोण प्रस्तुत हो गए-मिथ्या दृष्टिकोण का निरोध किया जा सकता है, उसका विशोधन अथवा क्षय किया जा सकता है। इसका अर्थ है-मुक्ति की दिशा में प्रस्थान। तीन धाराएं
बंधन का एक कारण है अज्ञान। ज्ञान के बिना कुछ नहीं हो सकता। सबसे पहले ज्ञान की चेतना जागे। जब वह जाग जाती है, बन्धन शिथिल होने लग जाता है। चाहे पुण्य का बंध हो या पाप का बंध, अनुकूल परिस्थिति हो या प्रतिकूल परिस्थिति, सुख हो या दुःख-दोनों स्थितियां भटकाने वाली बन जाती हैं। अध्यात्म के आचार्यों ने सुखवाद का भी विरोध किया है। इस स्थिति के सन्दर्भ में तीन धाराएं प्रस्तुत हो गई-पुण्यवाद, पापवाद और पुण्य-पापातीतवाद-पुण्य और पाप-दोनों से अतीत होना। जब व्यक्ति पुण्य
और पाप से अतीत होता है, सारी स्थितियां बदल जाती हैं। जीवन में कभी एक क्षण ऐसा आता है, अन्तर्ज्ञान का प्रकाश फूटता है, आदमी बदल जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org