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अस्तित्वाद
३५६ दृष्टिकोण भी दूसरे प्रकार का होना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण पर्याय को देखने वाला दृष्टिकोण है। अनेक प्रकार के रूप हमारे सामने हैं। हम नाना रूपों को देखते हैं पर मूल रूप को नहीं देख पा रहे हैं। मूल रूप को देखने वाली आंख चाहिए, उसे समझने वाला दृष्टिकोण चाहिए जिससे हम अस्तित्व को जान सकें, सत्य को जान सकें, 'है' को जान सकें। जो है, उसे जान सकें। उसे देखने के लिए असली आंख की जरूरत है।
जेठानी ने देवरानी के गले में हार देखा और ईर्ष्या जाग गई। उसने सोचा-मेरे घर हार ही नहीं है और इसने इतना सुन्दर हार पहन लिया। इस हार को जैसे तैसे विकृत बना देना चाहिए। वह देवरानी से बोली-'आज तुम्हें बढ़िया हार मिला है। यह हार कहां से आया?' देवरानी ने कहा- ऐसे ही सहजता से आ गया।' जेठानी ने कहा-'क्या यह असली है। मोती बहुत चमक रहे है, पर नकली तो नहीं हैं? असली हार काफी कीमती होता है। इतना पैसा कहां से आया? लगता है-हार नकली है। मेरे देवर को जौहरी ने ठग लिया है। लाओ! मैं इस हार की परीक्षा करूं।' देवरानी ने पूछ लिया- कैसे परीक्षा करोगी?' जेठानी ने कहा-'हार खोलकर मुझे दो। मैं मोती को दांत से दबाऊंगी। असली मोती होंगे तो दांत से खराब नहीं होंगे और नकली मोती होंगे तो दांत से खराब हो जाएंगे।' देवरानी जेठानी की बात के पीछे छिपी दुर्भावना जान गई। उसने कहा-'आप बात तो सच कह रही हैं पर असली मोती की परीक्षा के लिए दांत भी असली चाहिए। आपके इन नकली दांतों से असली मोती की परीक्षा नहीं हो सकेगी।' नई दृष्टि विकसित हो
_अस्तित्व को जानने के लिए हमारी दृष्टि असली चाहिए। हमारी दृष्टि नकली बन चुकी है। उस नकली आंख से हम पर्याय, परिवर्तन और रूपान्तरण को देख सकते हैं, अस्तित्व को नहीं जान सकते। अस्तित्व को जानने के लिए, सत्य को जानने के लिए, 'है' को जानने के लिए एक नई दृष्टि चाहिए। वह नई दृष्टि उदभव हो तो अस्तित्व को जानने की दिशा में प्रस्थान हो सकता है।
हमारे सामने दो जगत हैं-अव्यक्त जगत और व्यक्त जगत, दृश्य जगत और अदृश्य जगत। व्यक्त जगत हमारे सामने है। हमने उसको ही सब कुछ मान लिया। एक भ्रांति पैदा हो गई। वस्तुतः व्यक्त जगत बहुत छोटा है, अव्यक्त जगत बहुत बड़ा है। व्यक्त जगत एक बिन्दु जितना है और अव्यक्त जगत महासिन्धु जितना है। दृश्य जगत से बहुत बड़ा है अदृश्य जगत। अस्तित्व को जानने के लिए उस दृष्टि की जरूरत है जो व्यक्त को पार कर अव्यक्त तक पहुंच सके, जो दृश्य जगत को पारकर अदृश्य जगत तक पहुंच सके। यदि वह आंख प्राप्त होती है, वह दृष्टि उपलब्ध होती है तो अस्तित्व को जाना जा सकता
छद्मस्थ और केवली
जैन आगमों के दो प्रसिद्ध शब्द हैं-छद्मस्थ और केवली। छद्मस्थ की आंख पर्याय तक जाने वाली आंख है। छद्मस्थ की आंख अस्तित्व तक जाती है Jain Education International For Private & Personal Use Only
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