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________________ मोक्षमार्ग ३५५ नमि और विनमि का समर्पण एक निदर्शन है। वे ऋषभ के साथ तदात्म हो गए। श्रद्धा का अर्थ है- तादात्म्य का स्थापित होना, लक्ष्य से जुड़ जाना । निग्रह और शोधन तीसरा साधन है— निग्रह। जिसमें अपना निग्रह करने की क्षमता नहीं है, संयमन की क्षमता नहीं है, वह आत्मा से परमात्मा नहीं बन सकता। परमात्मा बनने के लिए निग्रह का होना भी जरूरी है । चौथा साधन है - शोधन, संस्कारों की शुद्धि । जितने संस्कार बने हुए हैं, उनका शोधन और निर्जरण जरूरी है। इसके बिना परमात्मा बनने का मार्ग प्रशस्त नहीं होता । ज्ञान, श्रद्धा, निग्रह और शोधन - ये चार साधन जब समवेत होते हैं तब एक मार्ग बनता है, मोक्ष का मार्ग प्रस्तुत होता है । एक आदमी अन्धा है । यदि उसके सामने पचास दीप जला दिए जाएं तो क्या होगा? दीप जले, अन्धकार मिट गया किन्तु अंधे व्यक्ति के लिए उसका कोई अर्थ नहीं है। पहले अपना प्रकाश चाहिए । जब अपना प्रकाश होता है, अपनी आंख होती है तब प्रकाश की सार्थकता हो सकती है । अन्धे आदमी के लिए दिन और रात बराबर हैं, दीप का जलना और न जलना बराबर है। पहली शर्त है अपना प्रकाश । अगर अपना प्रकाश है तो एक दीया काफी है, पचास दीए जलाने की कोई जरूरत नहीं है। एक बल्ब जला, प्रकाश उपलब्ध हो जाएगा। व्यक्ति का अपना प्रकाश काम आता है, उधार या मांग-मांग कर लाया हुआ प्रकाश काम नहीं देता । संस्कृत का एक न्याय है- याचितमण्डनकम् । एक व्यक्ति बहुत सुन्दर और मूल्यवान आभूषणों से लदा हुआ था। किसी व्यक्ति ने पूछ लिया- 'अरे भाई ! इतने सुन्दर गहने कब लाए?' पास खड़ा व्यक्ति बोल उठा - 'सारा मांगा हुआ है । अपना एक भी नहीं है । घर जाते ही सारे गहने चले जाएंगे। इसके पास कुछ भी नहीं रहने वाला है।' दूसरे का गहना मांगकर पहनने से कब तक काम चलेगा। काम देंगे अपने आभूषण । जो अपना है, वही काम देता है। जब तक अपना प्रकाश नहीं जागता, बन्धनमुक्ति की बात सम्भव नहीं बनती। दूसरी बात है अपना कर्तृत्व । जैसे व्यक्ति का अपना प्रकाश होता है वैसे ही उसका अपना कर्तृत्व होता है । तीसरी बात है अपना समर्पण। बाहरी वातावरण और आकर्षण समर्पण में बहुत बड़ी बाधा है । व्यक्ति का आकर्षण एक दिशा में केन्द्रित नहीं है । कभी किसी मंत्र-तंत्र के प्रति आकर्षण है और कभी किसी देवतंत्र के प्रति आकर्षण है। आकर्षण का कोई केन्द्र-बिन्दु नहीं है । वह बंटा हुआ है इसलिए एक भी काम पूरा नहीं हो पा रहा है। जब तक आस्था केन्द्रित नहीं होती, व्यक्ति एक बिन्दु पर नहीं टिकता तब तक कुछ नहीं होता। यह बिखराववादी मनोवृत्ति व्यक्ति को लक्ष्य से दूर ले जा रही है । यदि व्यक्ति एक बिंदु पर टिक जाए, एक शब्द पर गहराई से टिक जाए तो वह एक शब्द भी आदमी को तार सकता है । हजार शब्द जिस For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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