________________
महावीर का पुनर्जन्म
३५४
का राज्य दिया, बाहुबली को तक्षक्षिला का राज्य दिया। शेष अट्ठानवें पुत्रों को अलग-अलग राज्य दे दिए। भगवान ऋषभ के दो पालित पुत्र थे नमि और विनमि। वे उन्हें कोई राज्य नहीं दे सके। वे कहीं बाहर प्रवास पर थे। जब वे दोनों भाई वापस अयोध्या आए तब ऋषभ वहां नहीं थे। उन्होंने भरत से पूछा - 'भगवान ऋषभ कहां है?”
भरत ने कहा- 'ऋषभ मुनि बन गए ।' 'भगवान ऋषभ ने क्या किया?"
'सब भाइयों में राज्य बांट दिया ।'
'हमें क्या मिला?”
'तुम्हें कुछ नहीं दिया ।'
'हम भगवान के पुत्र हैं और हमें कुछ भी नहीं दिया! हमारे पिता कच्छ और महाकच्छ भी साधु बन गए !' वे सीधे भगवान के पास आए। उन्होंने ऋषभ को वन्दना कर निवेदन किया- 'प्रभो! हमें हमारा राज्य दो ।'
भगवान ऋषभ सब कुछ छोड़ चुके थे, वे अकिंचन और अपरिग्रही बन चुके थे। उनके पास कुछ भी नहीं था। वे क्या देते ?
एक दिन बीता। दो दिन बीते कई दिन बीत गए । प्रतिदिन वे अपनी मांग दोहराते - 'हमें हमारे हिस्से का राज्य दो।' उन्होंने अपनी इस मांग के लिए सब कुछ समर्पित कर दिया ।
लोगों ने कहा- 'भगवान संन्यासी बन गए, मुनि बन गए। इन्होंने सब कुछ छोड़ दिया । इनके पास कुछ भी नहीं है । अब ये तुम्हें राज्य नहीं देंगे ।' नमि, विनमि ने कहा- 'हम भगवान को छोड़कर नहीं जाएंगे। या तो देना पड़ेगा अन्यथा यहीं मरेंगे, यही खपेंगे।'
इसका नाम है समर्पण | इसका नाम है श्रद्धा । करिष्यामि वा मरिष्यामि – करूंगा या मरूंगा, इसके सिवाय तीसरा विकल्प नहीं । भगवान बुद्ध ने संकल्प किया- जब तक बोधि प्राप्त नहीं होगी, तब तक मैं इस आसन को नहीं छोडूंगा, चाहे चमड़ी - मांस सब कुछ सूख जाये । बुद्ध का संकल्प दृढ़ था । बोधि को आना पड़ा। आखिर नमि, विनमि को भी राज्य देना पड़ा।
कहा जाता है— नागकुमार का अधिपित धरणेन्द्र आया । उसने देखा- ये मानने वाले नहीं है । धरणेन्द्र ने नमि, विनमि से कहा - 'तुम भरत के पास जाओं । भरत तुम्हें राज्य देगा ।'
नमि, विनमि बोले- 'भरत कौन होता है राज्य देने वाला? जैसे हम है वैसा ही भरत है। भरत द्वारा दिया गया राज्य हमें स्वीकार्य नहीं है। राज्य देंगे तो ऋषभदेव देंगे। यदि नहीं देंगे तो हम यहीं प्राण त्याग देंगे।' उन्होंने देवता की बात को भी अस्वीकार कर दिया। अन्त में ऋषभ के मुंह से एक ध्वनि की गई— 'जाओ! तुम्हे वैताढ्य का राज्य दिया जाता है ।'
वैताढ्य हिमालय का एक भाग है। वहां नमि और विनमि ने उत्तर श्रेणी और दक्षिण श्रेणी में अपने नगर बसाएं। आज की भाषा में कहें तो जो तिब्बत है, वह वैताढ्य रहा होगा। तिब्बत ऋषभ से बहुत संबन्धित रहा है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org