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________________ ३५६ महावीर का पुनर्जन्म समस्या को हल नहीं कर सकते, एक शब्द उस समस्या को हल कर देता है। आज जो बिखराव पैदा हुआ है, वह सबसे बड़ा खतरा है। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पण अनिवार्य है। कर्तृत्व और समर्पण के साथ तप तपना भी जरूरी है। कठिनाइयों को झेला जाए, सब कुछ सहा जाए। जब इन चारों का योग मिलता है, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का समन्वित मार्ग उपलब्ध होता है तब परमात्मा बनने का मार्ग हाथ में आ जाता है। देखो, चलो, समर्पित रहो और तप तपो, परमात्मा की दिशा में प्रस्थान हो जाएगा। आत्मदर्शन की प्रक्रिया हम इस सचाई को कथा से समझें। एक दार्शनिक आत्मा पर प्रवचन कर रहा था। एक युवक ने कहा-'महाशय! आप परमात्मा के बारे में बता रहे हैं, आत्मा की चर्चा कर रहे हैं। मैं प्रत्यक्ष में विश्वास करता हूं। यदि आप आत्मा को हाथ में लेकर दिखा दें तो मैं मानूंगा-आत्मा है अन्यथा नहीं।' दार्शनिक पहुंचा हुआ था। उसने कहा- 'युवक! मुझे बोलते बहुत देर हो गई। मैं थोड़ा थक गया हूं। तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने में कुछ समय लगेगा। तुम पहले एक गिलास दध ले आओ. दध पिला दो।' युवक एक गिलास दूध ले आया। उसने गिलास दार्शनिक के हाथ में थमा दी। दार्शनिक गिलास के भीतर गहराई में झांकने लगा। वह बहुत देर तक उसे एकटक देखता रहा। युवक ने कहा-'महाशय! आप क्या देख रहे हैं? आप जल्दी दूध पीएं और मेरे प्रश्न का उत्तर दें।' 'मैं तुम्हारे प्रश्न का ही उत्तर दे रहा हूं।' 'आप दूध नहीं पीएंगे।' 'नहीं।' 'आप इसके भीतर क्या देख रहे हैं?' 'मैंने सुना है-दूध में घी होता है। मैं देख रहा हूं, इस दूध में घी कहां है?' 'वाह! अच्छे दार्शनिक हए। तम समझदार ही नहीं हो।' 'क्या दूध में घी नहीं होता?' 'होता तो है पर ऐसे नहीं मिलता।' 'कैसे मिलता है?' 'दार्शनिक कहलाते हो और इतनी सी बात भी नहीं जानते। पहले दूध को तपाना होता है। फिर उसको जामन देकर जमाना होता है। उसके बाद बिलौना पड़ता है, मथना पड़ता है। जब इतनी प्रक्रिया से गुजरा जाता है तब घी मिलता है।' 'तुमने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं दे दिया है।' 'कैसे? मैं समझा नहीं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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