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मोक्षमार्ग
'आत्मा है और परमात्मा है' इस घोषणा ने आध्यात्मिक जगत के विकास को नया आयाम दिया है। आत्मा और परमात्मा की स्वीकृति एक अलौकिक जगत की स्वीकृति है। यदि ये तत्त्व न हों तो धर्म और सामाजिक कानून या नियम भिन्न हैं, ऐसा नहीं माना जाता। लौकिक और अलौकिक, धर्म
और समाज के बीच में एक भेदरेखा है आत्मा और परमात्मा। आत्मा परमात्मा हो सकती है, यह महावीर की महान घोषणाओं में एक उद्घोषणा है। सहज प्रश्न होता है-आत्मा परमात्मा कैसे हो सकता है? उसका साधन क्या है? महावीर ने कहा-आत्मा बंधनयुक्त है। बंधन से मुक्त होने के लिए एक मार्ग का चुनाव जरूरी है, मार्ग को अपनाना आवश्यक है और वह मार्ग बहुत प्रशस्त राजमार्ग होना चाहिए।
क्या बन्धन-मुक्त होने के लिए ज्ञानी होना जरूरी है? यह एक प्रश्न है। क्या आचारवान होना जरूरी है? यह दूसरा प्रश्न है। क्या भक्त होना जरूरी है? यह तीसरा प्रश्न है। क्या तपस्वी होना जरूरी है? यह चौथा प्रश्न है। इनका उत्तर देना बड़ा कठिन है। चार दृष्टिकोण १ एक आदमी से पूछा गया-तुम दिल्ली में रहते हो?
'हां, दिल्ली में रहता हूं।' 'तुम कलकत्ता गए या नहीं गए? 'मैं जानता ही नहीं कि कलकत्ता कहां है? मैं कलकत्ता कैसे जा सकता
२ दूसरे व्यक्ति से पूछा गया- 'तुम कलकत्ता गए या नहीं गए?'
'नहीं गया 'क्या तुम्हें पता है कि कलकत्ता कहां है?' 'हां, मैं यह भी जानता हूं कि वह कितनी दूर है। पर वहां गया नहीं।' 'क्यों नही गए?'
'मैं ट्रैन पर चढ़ा ही नहीं हूं।' ३ तीसरे से पूछा गया-'तुम कलकत्ता गए या नहीं गए?'
'नहीं गया।' 'क्या तुम जानते हो-कलकत्ता कहां है?' 'हां जानता हूं।' 'क्या तुम रेलयात्रा करते हो?'
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