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________________ सामाचारी संतों की ३४५ मुनि ज्ञान की पुनरावृत्ति करने, त्रुटित ज्ञान को पूर्ण करने और नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञानार्थ उपसंपदा स्वीकार करता है। इसी प्रकार दर्शन के स्थिरीकरण और संधान के लिए तथा दर्शन विषयक शास्त्रों के ग्रहण के लिए दर्शनार्थ उपसंपदा स्वीकार की जाती है। वैयावृत्त्य और तपस्या की विशिष्ट साधना के लिए चारित्रार्थ उपसंपदा स्वीकार की जाती है।' सामाचारी के ये दस अंग हैं। इनको व्यापक दृष्टिकोण से समझने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि इनमें जो प्रेरणाएं हैं, वे महानता की दिशा में ले जाने वाली हैं। चर्या : प्राचीन और अर्वाचीन सामाचारी के ये तत्त्व मुनि की दिनचर्या के अनिवार्य अंग हैं। दिनचर्या के मौलिक तत्त्व सदा एक-से रहे हैं, किन्तु व्यवस्थागत तत्त्व द्रव्य, क्षेत्र और काल के अनुसार बदलते रहे हैं। प्राचीन काल के मुनियों की जो दिनचर्या थी, वह आज से कुछ भिन्न थी। उसकी तुलना नहीं की जा सकती। प्राचीन काल में मुनियों ने दिन रात के आठ प्रहरों में शरीर के लिए केवल दो प्रहर रखे, शेष छह प्रहर अध्यात्म के लिए, परम के लिए रखे थे। उनके छह प्रहर परमार्थ के लिए या ईश्वरार्पण के लिए थे। दिन का तीसरा प्रहर और रात्रि का तीसरा प्रहर शरीर के लिए। उस समय चार प्रहर ध्यान और दो प्रहर स्वाध्याय, एक प्रहर भिक्षाचर्या और एक प्रहर निद्रायोग-यह विभाजन था। यह थी दिनचर्या । यह सारा इसलिए किया जाता था कि श्रुत की परम्परा को अविच्छिन्न रखना था। वह ध्यान और स्वाध्याय के बिना संभव नहीं था। आज भी हमें यह सोचना है-जो ज्ञान की परंपरा हमें भगवान महावीर से लेकर आचार्य भिक्षु या आचार्य तुलसी तक प्राप्त हुई है, उसे कैसे सुरक्षित रखा जाए? उसकी अविच्छिन्नता कैसे रह सकती है? यह हमारा दायित्व है। पूर्वजों ने जो ज्ञानराशि दी, उसकी संभाल रखनी है। उन्होंने ज्ञान-दर्शन और चारित्र की संपदा से जैन परंपरा को समृद्ध किया, उसको अधिक समृद्ध करना हमारा दायित्व है। इसकी क्रियान्विति के लिए हमें वर्तमान की दिनचर्या में परिवर्तन करना होगा। एक अभीप्सा जगानी होगी। अभीप्सा लिंकन की राष्ट्रपति लिंकन गरीब घर के थे। उनके मन में कानून की पुस्तकें पढ़ने की ललक जागी। पुस्तकें कहां से मिले? कौन दे? स्वयं के पास पैसा नहीं कि खरीद सके। उन्होंने सुना-अमुक गांव में एक रिटायर्ड जज है। उसके पास पुस्तकों का भंडार है। मन का संकल्प उभरा और उस गांव की दिशा में चल पड़ा। रास्ते में एक तूफानी नदी पड़ती थी। वर्षा का मौसम था। एक नाव ली और अकेला चल पड़ा। तूफान के कारण नाव डांवाडोल होने लगी और एक बर्फ की चट्टान से टकरा कर टूट गई। अब वह यों ही पानी में तैर कर नदी पार कर गया। न्यायाधीश के पास पहुंचा और अपनी जिज्ञासा बताई। संयोग ऐसा मिला-न्यायाधीश का जो नौकर था, वह चला गया था। न्यायाधीश को नौकर की प्रतीक्षा थी। उसने उसे अपने पास रख लिया। लिंकन पानी भरता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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