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________________ महावीर का पुनर्जन्म साधन, कृत्रिम - साधन व्यक्ति की रोग निरोधक क्षमता को कम करते हैं। आन्तरिक साधन, परीषह को सहने की साधना शरीर की क्षमता को बढ़ाती है। उससे रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है । अध्यात्म में अपनी आंतरिक क्षमता को बढ़ाने पर बल दिया गया । भीतर में जो अनन्त शक्ति है, उसका थोड़ा हिस्सा भी प्रकट होता है, भीतर में जो आनन्द का सागर लहरा रहा है, उसका थोड़ा अंश भी बाहर आता है तो व्यक्ति कष्ट को आनन्द मानकर झेल लेता है । यदि भीतर का आनन्द जाग जाए, आन्तरिक स्रोत फूट जाए जो जीवन सुखद और आनन्द से परिपूर्ण बन जाता है । १८ कष्ट सहने के लिए कष्ट नहीं है। कष्टों को आमंत्रित करना जैन दर्शन का उद्देश्य ही नहीं है। बहुत सारे लोग कहते है-जैन दर्शन को स्वीकार करने का, जैन मुनि बनने का अर्थ है- कष्टों को निमंत्रण देना । यह एक धारणा बन गई । वस्तुतः कष्टों को आमंत्रित करना जैन दर्शन का उद्देश्य नहीं है। जैन दर्श का उद्देश्य है— जो मार्ग स्वीकार किया है, उस मार्ग पर निर्बाध चलते रहें और उस मार्ग में जो कष्ट आए, उन्हें हंसते-हंसते झेलने की क्षमता जागृत हो जाए ' परीषह क्यों सहें? आचार्य उमास्वाति ने बहुत सुन्दर लिखा- मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहाः । परीषह को सहन करने का एक उद्देश्य है— मार्गाच्यवन । जिस मार्ग को स्वीकार किया है, उससे च्यवन न हो, उसमें स्थिर बने रहें । मार्गाच्यवन के लिए परीषहों को सहने का विधान है। इसका दूसरा उद्देश्य है— निर्जरा । निर्जरा के लिए कष्टों को सहन करना चाहिए । व्यक्ति सोचे- मैं जो कष्ट सह रहा हूं, उससे पूर्वकृत कर्म की निर्जरा हो रही है । यदि ये दोनों उद्देश्य स्पष्ट हों तो कष्ट होने पर आदमी रोएगा नहीं, वह बड़ी शांति के साथ कष्ट को झेल लेगा। अगर यह उद्देश्य नहीं होता है तो थोड़ी सी कठिनाई आने पर भी व्यक्ति विचलित हो जाता है, स्वीकृत मार्ग को छोड़ देता है । आसन-सिद्धि : कष्ट सहने का उपाय महर्षि पतंजलि ने कष्टों को सहन करने का उपाय बतलाया—आसनसिद्धि । प्रश्न हुआ - आसन - सिद्धि क्यों ? उत्तर दिया गयः- आसन सिद्ध हो जाएगा तो व्यक्ति को द्वंद्व नहीं सता सकेंगे। सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास आदि द्वंद्व उसकी साधना में बाधक नहीं बन पाएंगे। प्रतिप्रश्न उभरा-आसन करने से द्वन्द्वों पर विजय कैसे होगी? कहा गया—आसन सिद्ध करने से बोध - शून्यता आएगी। पांच मिनट पद्मासन करने से आसन सिद्धि नहीं होती। आसन सिद्धि का समय है-डेढ़ घंटे से तीन घंटे तक । आसन सिद्धि से बोध-शून्यता आ जाएगी, इसका अर्थ है-आसन-सिद्धि से शरीर शिथिल बन जाएगा, फिर सर्द गर्मी नहीं सताएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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