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ब्राह्मण वह होता है
३३५ के लिए कोई आदर्श या प्रतीक चाहिए। यदि ध्यान करते समय भी कोई इष्ट, आदर्श या प्रतीक नहीं होता है तो ध्यान की विधि भी भटका देती है।
जैनों के सामने अपना इष्ट है—णमो अरहंताणं। यदि यह इष्ट नहीं है तो जैन भटक जाएगा। प्रत्येक धर्म-दर्शन के समक्ष अपना इष्ट होता है, आदर्श होता है।
मैं मानता हूं कि ब्राह्मण एक आदर्श का नाम है। समाज के सामने एक ऐसा आदर्श चहिए, जो त्याग और विद्या का, ज्ञान का प्रतीक हो। उसे समाज में प्रधानता और अग्रगामिता प्राप्त हो। जो भोगप्रधान और अविद्याप्रधान होगा, वह स्वयं भटकेगा और दूसरों को भी भटका देगा। वह आदर्श नहीं बन सकता। उसकी दिशा में समाज का प्रस्थान नहीं हो सकता। यदि प्रस्थान होगा तो वह भोग की अंधेरी गलियों में भटक जाएगा। उसका उद्धार संभव नही होगा। वह अज्ञान और विद्या की तमिम्न में ऐसा खो जाएगा कि रास्ता मिलना दुर्लभ हो जाएगा।
ब्राह्मण के रूप में जिस प्रकाश-स्तंभ और ज्योति-स्तंभ की स्थापना की गई, वह यथार्थ में अत्यंत बुद्धिमत्ता का कार्य था और इस बुद्धिमत्ता ने एक ऐसे व्यक्ति को प्रतिष्ठित किया, जिसकी समाज में निरंतर उपेक्षा रही। यदि ब्राह्मण जाति अपने इस गौरव के प्रति जागरूक बने तो इस प्रतिष्ठित शब्द की गरिमा पुनः स्थापित हो सकती है।
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