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महावीर का पुनर्जन्म
सबसे बड़ा परिग्रह है शरीर और यही सबसे बड़ा भयस्थान है। आदमी सोचता है, कहीं शरीर छूट न जाए? एक संन्यासी ने एक व्यक्ति से कहा - 'तुम सात दिनों के भीतर मर जाओगे ।' व्यक्ति ने सुना । सात दिन कैसे निकलते ? वह तो उसी क्षण मरने लगा और सात दिन आते-आते मरणासन्न हो गया । मृत्यु का भय, शरीर के छूटने का भय सबसे बड़ा होता है ।
दूसरा बड़ा भय है-अपने संस्कारों का, विचारों का। आदमी सोचता है, मेरे विचार छूट न जाएं। पिता ने पुत्र से कहा - 'चलो, आचार्यश्री के पास ।' पुत्र बोला -- ' वहां तो नहीं जाऊंगा, क्योंकि वहां जाने पर मेरे विचार बदल जाएंगे, संस्कार बदल जाएंगे। जिन विचारों को मैंने वर्षों तक पाला-पोसा है, वे छूट जाएंगे। यह उचित नहीं है।'
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भय से अतीत होना बहुत कठिन है । वास्तव में ब्राह्मण वह होता है, जो भय से मुक्त हो जाता है।
ब्राह्मण : पहले और आज
विन्टरनिट्ज ने भारतीय साहित्य के इतिहास में लिखा है- ब्राह्मण जाति बहुत उदार रही है और उसने अनेकविध सत्यों को अपनाया है। भगवान महावीर को कोई क्षत्रिय गणधर नहीं मिला। सभी गणधर ब्राह्मण थे ।
आज कुछ अन्तर आ गया है । ब्राह्मण इतने उदार नहीं हैं । आज मात्र एक जाति रह गई है। आज वह ब्राह्मण नहीं रहा, जो ब्रह्म से जुड़ा हुआ हो, विराट से जुड़ा हुआ हो। जहां भी विस्तार होता है, वहां परिवर्तन आ ही जाता है । समस्याएं आती हैं, उनका समाधान होता है और स्रोत छूट जाता है । सभी की एक ही कहानी है । आज क्षत्रिय वह क्षत्रिय नहीं रहा, जो उत्पत्ति काल में था। उसका काम था प्रजा का रक्षण पर इतिहास साक्षी है कि क्षत्रियों ने प्रजा का कितना शोषण किया, कितना संताप दिया ओर कितनी क्रूरता बरती । उद्भवकालीन जो निर्मलता होती है, गुण-गरिमा होती है, वह विस्तारकाल में नहीं रह सकती । यह वैश्विक नियम है। इसका कोई अपवाद नहीं होता । प्रारम्भ में गुणवत्ता होती है । विस्तार होने पर जाति बन जाने पर वह गुणवत्ता विलीन हो जाती है ।
हम मूल पर विचार करें। ब्राह्मण की कल्पना बहुत बुद्धिमत्ता पूर्वक की गई कल्पना है। माना गया कि समाज में ब्राह्मण अवश्य ही होना चाहिए। वह समाज अच्छा समाज नहीं होता, जिसमें ब्राह्मण नहीं होता ।
मुनि : ब्राह्मण
जैन परंपरा में ब्राह्मण को मुनि का स्थान प्राप्त हो गया। जो पांच महाव्रतों का पालन करता है वह मुनि होता है । उसे ब्राह्मण बता दिया । जो हिंसा नहीं करता, झूठ नहीं बोलता, चोरी नहीं करता, ब्रह्मचर्य का पालन करता है, अपरिग्रही होता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं-यह जैन आगम का कथन है । इस प्रकार मुनि को ब्राह्मण मान लिया और ब्राह्मण को मुनि मान लिया। ब्राह्मण त्याग और विद्या का प्रतीक माना गया। जिस समाज में त्याग और विद्या का प्रतीक नहीं होता, वह समाज भटक जाता है । प्रत्येक व्यक्ति या समाज को आगे बढ़ने
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