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प्रवचन माता
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में समाया हुआ है।' पांचवां बोला-'परमात्मा से बड़ा है भक्त, जिसके हृदय (मस्तिष्क) में भगवान् समाया हुआ है।'
सबसे बड़ा है हमारा मस्तिष्क। हमारे मस्तिष्क में, शरीर में सारा ज्ञान समाया हुआ है।
कायसिद्वि, वाक्सिद्धि और मन-सिद्धि-इन तीनों में सारी सिद्धियां आ जाती हैं। अणिमा आदि आठ सिद्धिया तथा अन्यान्य सिद्धियां भी इनमें समाहित हो जाती हैं। आठ प्रवचन-माताएं
दूसरों शब्दों में कहें तो आठ प्रवचन माताओं को साथ लेने का अर्थ है-सब कुछ साध लेना। यही जीवन का मूल है। यह भी कहा जा सकता है कि आठ प्रवचन-माताएं शरीर में समाहित हैं। एक शरीर को साध लो, सब कुछ सिद्ध हो जाएगा। शरीर को ऐसा साधो कि चलते समय यह लगे-कोई सिद्धपुरुष चल रहा है। बोलो तो ऐसे बोलो कि कोई सिद्धपुरुष बोल रहा है। सोचो तो ऐसे सोचो कि कोई सिद्धपुरुष सोच रहा है। ये तीनों सिद्धियों को लाने वाले हैं। मनुष्य सिद्धियों के लिए बाहर भटकता है। सिद्धियां हमारे शरीर के भीतर हैं। हमारा मन, हमारा संकल्प सबसे बड़ी सिद्धि है। हमारी काया और वाणी सबसे बडी सिद्धि है।
___ हम प्रवचन-माताओं को केवल रूढ़ अर्थ में न लें। उनमें जो रहस्य छिपा है, उसको खोजें । पतंजलि का अष्टांग योग, बौद्ध दर्शन का अष्टांग मार्ग, हठयोग की आठ सिद्धिया और जैन दर्शन की आठ प्रवचन-माताएं-ये साधना की दीपशिखाएं हैं। यदि हम उनका यथार्थ आकलन करें और उनके साथ तादात्म्य जोडें तो सिद्ध जैसा जीवन जीया जा सकता है। सिद्धि हमारे द्वार पर दस्तक देती हुई प्रतीत होगी।
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