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________________ ३३० महावीर का पुनर्जन्म आत्महत्या कर लूं। कभी सोचता है-उसको मार दूं। कभी सोचता है, आग लग जाएगी तो क्या होगा? व्यक्ति अकारण ही ऐसे बुरे संकल्पों से आक्रान्त रहता है। यह सारा भावों का प्रतिबिम्ब है। शरीर के अशुभ, वाणी और मन के अशुभ पर भावों की छाया पड़ रही है। हमारे भीतर अशुभ भाव विद्यमान हैं। वे भाव सबको प्रभावित कर रहे हैं। धार्मिक कौन? धर्म है अशुभ के साथ संघर्ष करना। धार्मिक वह है जिसमें कभी कोई अशुभ न आए। ऐसा धार्मिक आज खोजने पर भी नहीं मिलेगा। धार्मिक का लक्षण है-जिसने अशुभ के साथ संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया है। वह उस पर विजय पाने के लिए उत्सुक है। वह केवल अध्यात्म में, शुभ में चला जाना चाहता है। अध्यात्म का अर्थ है-द्रव्य आत्मा। वहां कवेल शुभ है, अशुभ है ही नहीं। ईश्वरवादी की भाषा में कहें तो ईश्वरीय सत्ता में चले जाना, इसका नाम है शुभ में चले जाना। कहना तो यह चाहिए कि वहां शुभ और अशुभ का कोई प्रत्यय ही नहीं है। दोनों समाप्त हो जाते हैं किन्तु जब तक जीवन है तब तक ये दोनों चलते हैं। धार्मिक वह होता है, जो अशुभ से लड़ना जानता है, उसको परास्त कर आगे बढ़ना जानता है। अशुभ से निवर्तन और अशुभ से संघर्ष , यह है गुप्ति। मन, वचन और काया की गुप्ति। इसका अर्थ है-मन के साथ, वचन और काया के साथ सुरक्षा को जोड़ देना। आगे बढ़ने का सबसे बड़ा सूत्र है-अपने सामर्थ्य का अनुभव करना। मैं अशुभ से लड़ सकता हूं, उस पर विजय प्राप्त कर सकता हूं, इस शक्ति का अहसास होना-यह है प्रवचन माता का सूत्र। जीवन क्या है? प्रश्न होता है कि बातें तो छोटी-छोटी बताई गई हैं कि संयम से चलो, संयम से बोलो, संयम से आहार करो, संयम से वस्तुओं का व्यवहार करो और संयम से उत्सर्ग करो। इतनी छोटी बातें और कह दिया कि सारा प्रवचन इसमें समा गया। विरोधाभास जैसा प्रतीत होता है। अब इसे हम उलट कर देखें। जीवन और है क्या? क्या शरीर, मन और वाणी के अतिरिक्त है जीवन? सारा ज्ञान इस शरीरगत मस्तिष्क में समाया हुआ है। मस्तिष्क के आगे सूक्ष्म शरीर में और उससे भी आगे आत्मा में सारा ज्ञान समाया हुआ है। समूचे ज्ञान की अभिव्यक्ति वाणी से होती है। सारे ज्ञान का संयोजन शरीर से होता है, मन से होता है। शरीर वाणी और मन-इनमें पूरा ज्ञान नहीं समायेगा तो कहां समायेगा? आकाश इतना बड़ा नहीं है कि पूरा ज्ञान समा जाए, शरीर के सामने आकाश छोटा है। प्रश्न था सबसे बड़ा क्या? एक ने कहा-'पृथ्वी।' दूसरा बोला-'नहीं, पृथ्वी से बड़ा समुद्र है, जिसमें पृथ्वी समाई हुई है।' तीसरा बोला-'सबसे बड़ा है आकाश ।' चौथा बोला-'नहीं, आकाश से बड़ा है परमात्मा जो समूचे आकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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