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प्रवचन माता
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शुभ हो गया। हाथ, पैर,सिर, इन्द्रिया, आंखें-इन सबके साथ. अशुभ भी जुड़ हुआ है और शुभ भी। जब-जब ये प्रमाद से जुड़े, अशुभ बन गए और जब-जब ये सब अप्रमाद से जुड़े, शुभ बन गए।
____ इसी प्रकार वाणी का अशुभ भी है और शुभ भी। वाणी तो वाणी है। बोलना स्वरयंत्र का काम है। जब वाणी के साथ आवेश और आवेग जुड़ता है तब अशुभ ही होता है। कभी वाणी में अहंकार, कभी माया और कपट, कभी प्रवंचना और अप्रामाणिकता-ये सब वाणी को अशुभ बना डालते हैं। वाणी असत्य बन जाती है। प्रश्न होता है कि वाणी का सत्य क्या हैं? यह प्रश्न बहुत जटिल है। किस वाणी को सत्य मानें और किसे असत्य? बात यथार्थ कही जा रही हैं पर यदि उसके साथ लोभ जुड़ता है, क्रोध और माया जुड़ती है तो वह सत्य होने पर भी असत्य बन जाती है। जब कोई भी विकृति वाणी के साथ जुड़ती है तो वह असत्य बन जाती है। कोई भी विकार शुभ को अशुभ बना डालता है। वाणी को अशुभ बनाने वाले घटक तत्त्व हैं-भय, झूठ, हास्य, मजाक, वाचालता आदि। जो व्यक्ति वाचाल होता है, वह वाणी के असत्य का पोषक होता है। अधिक बोलना अशुभ को निमंत्रण देना है। आगमों में 'मितभाषण' पर बहुत बल दिया गया है। सर्वथा न बोलना व्यक्ति के लिए असंभव है। चौबीसी घंटे मौन करना संभव नहीं होता। इसीलिए कहा गया-वाणी का संयम करो। परिमित बोलो। मित बोलोगे तो काम की बात निकलेगी। अधिक बोलागे तो निकम्मी बातें करनी होंगी। इसीलिए कहा गया-'मौखर्य लाघवकरं'-वाचालता लघुता पैदा करती है, आदमी को तुच्छ बनाती है। ज्यादा बोलने वाला विवेक में नहीं रह पाता। झरती है जबान
एक बूढ़ा आदमी यात्रा पर था। गर्मी का मौसम। लंबा मार्ग। वह थक गया। एक गांव में गया। एक बहिन घर के बाहर खड़ी थी। उसने पूछा-'बहिन! कुछ देर विश्राम करना चाहता हूं। क्या कोई स्थान है?' बहिन ने पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा-'वहां सघन पेड़ है, बैठ जाओ।' वह बैठ गया। मौन था। बाड़े में एक भैंस बंधी थी। बहिन गोबर को साफ कर रही थी। वह तपाक से बोल पड़ा-'बहिन! तुम्हारे इस बाड़े का दरवाजा बहुत छोटा है, और यह भैंस बहुत मोटी है। यदि भैंस मर जाए तो बाहर कैसे निकालोगे?' बहिन बोली-'मूर्ख! ऐसी बात करता है? बूढ़ा हुआ है, बोलना ही नहीं जानता।' काफी बुरा-भला कहा। कुछ देर बाद वह पुनः बोला-'बहिन! तुम्हारा चूड़ा तो कीमती है पर जब तुम विधवा हो जाओगी तो खोलना पड़ेगा।' यह सुनते ही बहिन आवेश में आ गई और चूल्हें पर जो खीचड़ी पक रही थी, उसे उठाकर बूढ़े के सिर पर उड़ेल दी। सिर जल गया। वह भागा। लोगों ने पूछा-'अरे! क्या हुआ? क्या झर रहा है? बूढ़ा बोला-'जबान झर रही है।'
वाचालता वाणी का दोष है। वह वाणी को अशुभ बना देती है। जैसे वाणी का अशुभ है, वैसे ही मन का भी अशुभ है। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं
मिलेगा, जिसके मन में अशुभ का संकल्प न होता हो। व्यक्ति कभी सोचता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only
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