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महावीर का पुनर्जन्म
एक विधवा महिला सदा प्रसन्न रहती। उसका पति मर गया और लड़का भी नहीं था। आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी किन्तु उसकी प्रसन्नता सदा वृद्धिंगत बनी रही। पड़ोसियों ने पूछा-'तुम इतनी कठिनाइयों के बीच इतनी प्रसन्न कैसे रह लेती हो? क्या तुम्हें कभी कष्ट नहीं होता? हमने तुम्हें कभी उदास नहीं देखा। तुम्हारी प्रसन्नता का रहस्य क्या है?' उस महिला ने बहुत मार्मिक उत्तर दिया। उसने कहा- 'मैंने सचाई को समझ लिया-समुद्र में जहाज चलता है। उस जहाज को समुद्र कभी नहीं डुबो सकता। जहाज डूबते हैं किन्तु समुद्र उसे नहीं डुबोता, किन्तु वह पानी डुबोता है, जो उसके भीतर घुस जाता
है।'
यह कितनी मर्म की बात है। जहाज को समुद्र नहीं डुबोता किन्तु उसके भीतर घसने वाला पानी डबोता है। समद्र में अथाह पानी भरा है पर वह किसी के डूबने का कारण नहीं है। डूबने का कारण है जहाज के छिद्रों में से प्रविष्ट होने वाला पानी।
महिला ने कहा-'मैंने उन छिद्रों को बन्द कर दिया, जिनसे पानी भीतर आता है। मैंने अपने जहाज के सारे छिद्र रोक दिए। अब समुद्र के बीच चल रहा है मेरा जहाज, दुःखों के बीच चल रहा है मेरा जीवन पर ये मुझे कभी नहीं सताते। ये मेरे जहाज के भीतर नहीं आ सकते।'
विधवा महिला ने बहुत गहरी बात प्रस्तुत कर दी। इसे समझने में कठिनाई हो सकती है पर वह यह सत्य और मार्मिक है। जहाज के आस-पास अथाह पानी लहरा रहा है पर उसे डुबोता नहीं है। डुबोता वही है, जो उसके भीतर घुस जाता है। यह अध्यात्म का गहरा तत्त्व है। मनुष्य को बाहर का कोई नहीं डुबोता। डुबोता वही है, जो उसके भीतर जाता है। महावीर ने इस सत्य को उद्घोषित किया-'तुम इन छिद्रों को बन्द करो। ये छिद्र (आसव) ही डुबोने वाले हैं। यदि आश्रव नहीं हैं, छिद्र नहीं हैं तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें नहीं डुबो सकती। वैज्ञानिक एनोरबिन का मत
व्यक्ति दुःख स्वयं भोगता है। वह बाहर से नहीं आता। अध्यात्म द्वारा प्रस्तत यह सचाई विज्ञान द्वारा समर्थित सचाई बन रही है। रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनोरबिन ने अनेक प्रयोग किए। उन्होंने उन प्रयोगों से सिद्ध किया-सुख-दुःख पैदा करने वाले रसायन हमारे मस्तिष्क में ही पैदा होते हैं
और वे मस्तिष्क से ही म्रवित होते हैं। वे हमारे रक्त में मिलकर हमें सुखी या दुःखी बनाते हैं। प्रश्न आया-उनका स्राव कैसे होता है? एनोरबिन ने प्रमाणित किया-उनका स्राव हमारे ही अच्छे-बुरे विचारों एवं भावों के द्वारा होता है। यह धर्म की बात नहीं है, विज्ञान की बात है, किन्तु विज्ञान वही बात कह रहा है, जो हजारों वर्ष पहले धर्म ने कही। इस स्थिति में धर्म और विज्ञान अलग कहां
हैं?
____ हम महावीर की वाणी को पढ़ें। प्रश्न आया-सात वेदनीय का बंध कब होता है? कहा गया-प्राणी, भूत, जीव और सत्व के प्रति तुम्हारे मन में करुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only
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