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भटकाने वाले चौराहे
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धारणा बन गई-सार-प्रधान फलों के अतिरिक्त कुछ भी खाना बीमारी का घर है। पौष्टिक भोजन का महत्त्व देने वाले लोगों ने कहा-पौष्टिक भोजन ही सार है। फलों में क्या रखा है? उनमें केवल पानी है। अनेकान्त का मार्ग यह नहीं है। वह समन्वय का पथ है। उसका हृदय है-वस्तु में अनन्त विरोधी धर्म होते हैं, उन सबको मिलाकर कोई निर्णय निकालो। जिन वह होता है जो वस्तु के अनन्त धर्मों को जानता है। हम सब द्रव्यों को जानते हैं, पर सब पर्यायों को नहीं। जिन वह है, जो सब द्रव्यों और सब पर्यायों को साक्षात जानता है इसलिए वह किसी एक पर्याय पर अटक कर नहीं रह जाता। मनुष्य की दुर्बलता है-वह सब पर्यायों को नहीं जानता और जिस पर्याय को जानता है, उसे ही सब कुछ मान लेता है। हम न सारे अतीत के पर्याय जानते हैं, न वर्तमान और भविष्य के पर्याय जानते हैं। इस स्थिति में कुछेक पर्यायों को सब कुछ मान लेना उचित नहीं है। यह बात समझ में आ जाए तो भटकाव के प्रसंग न आए। अनन्त पर्यायों को जान सकें, यह व्यक्ति की क्षमता-सापेक्ष है किन्तु यदि हम अनेक अवस्थाओं और अनेक पर्यायों को जानने की दिशा में आगे बढ़ें तो वह सही मार्ग हाथ आ सकता है, जो जिन के द्वारा आख्यात है, जो सब धर्मों का समाहार करता है, वस्तु को अनन्त विरोधी युगलात्मक मानता है।
। आचार्यश्री दिल्ली में विराज रहे थे। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० राजा रमन्ना ने आचार्यवर से कहा-'आचार्यजी! बहुत वर्षों से मेरी तमन्ना है कि मैं अनेकान्त के बारे में कुछ जानूं। आचार्यश्री के आदेश से मैंने डॉ० रमन्ना को अनेकान्त के बारे में विस्तार से बताया।'
राजा रमन्ना डेढ़ घंटे तक तन्मय होकर सुनते रहे। वार्तालाप के प्रारम्भ में मैंने कहा-'अनेकान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु में अनन्त विरोधी युगल होते हैं। केवल धर्म ही नहीं. विरोधी धर्म होते हैं।'
राजा रमन्ना ने भावपूर्ण स्वरों में कहा-'मुनिजी! यह बहुत वैज्ञानिक बात है-It is very scientific ।' विज्ञान के आलोक में उन्होंने अनेकान्त को परखा और वे उसके वैज्ञानिक धरातल से बहुत प्रभावित हुए।
अनेकान्त वह दर्शन है, जो वैज्ञानिक सत्य है। इस पर चलने वाला कभी भटकता नहीं है, कभी अटकता नहीं है। जिन द्वारा प्ररूपित यह दृष्टिकोण हमारे जीवन का आलोक-दीप है, जिसकी रोशनी में हमारा मार्ग स्पष्ट और प्रकाशमय बन जाता है।
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