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भटकाने वाले चौराहे
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'क्या छन्ना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है?'
'हा, बहुत पौष्टिक होता है। उसमें प्रोटीन बहुत होता है। वह शक्ति और ताकत देता है।'
'आप बात तो ठीक कहते हैं, पर छन्ना घर में नहीं है, तब कहां से लाऊं? आप इतने पैसे भी नहीं कमा कर लाते हैं कि छन्ना बन सके।'
_ 'कोई बात नहीं है। छन्ना बहुत लाभदायी है तो बहुत खतरनाक भी होता है। ज्यादा पौष्टिक भोजन भी अच्छा नहीं रहता। ज्यादा प्रोटीन भी काम का नहीं है. रक्त में अवरोध पैदा करता है. हृदय के लिए अच्छा नहीं है।'
'आप बड़े विचित्र आदमी हो। पहले तो छन्ने को अच्छा बता रहे थे और अब बुरा बताने लग गए। मैं कौनसी बात मानूं?'
'यदि घर में छन्ना है तो पहली मान लो। यदि नहीं है तो दूसरी मान लो।'
जहां आग्रह नहीं होता, पकड़ नहीं होती वहां सामंजस्य और समझौता संभव बनता है। जहां एकांगी दृष्टिकोण बन जाता है वहां सामंजस्य और समझौते की संभावना क्षीण हो जाती है।
जिनवाणी का पहला अर्थ है-वीतराग की वाणी, जहां कोई पक्षपात नहीं, किसी के प्रति झुकाव नहीं, पूर्णतः तटस्थता। प्राचीन योग ग्रंथों में सुषम्ना को महापथ कहा गया है। वह नाड़ी न इधर झुकती है, न उधर। उसमें आने वाला व्यक्ति मध्यस्थ बन जाता है। समाधि की अवस्था मध्यस्थता की अवस्था है। समाधि में वही व्यक्ति होता है, जिसकी चेतना सुषुम्ना में चली जाती है। फिर वह दाएं-बाएं नहीं रहता, इधर-उधर नहीं झुकता। तटस्थता जिनवाणी का पहला-सूत्र है। सर्वज्ञता
जिनवाणी का दूसरा पहलू है-सर्वज्ञता। व्यक्ति बहुत तटस्थ है, वीतराग जैसा है या वीतराग है पर सर्वज्ञ नहीं है तो भी काम नहीं चलता। दोनों बातें होनी चाहिए-सर्वज्ञता और तटस्थता। आचार्य उमास्वाति ने बहुत सुन्दर लिखा-कैवल्य तब होता है, जब ज्ञानवरण, दर्शनावरण तथा अंतराय के साथ मोह कर्म क्षीण होता है। केवलज्ञान के साथ केवल ज्ञानावरण और दर्शनावरण के क्षय की शर्त नहीं है। पहली शर्त है-मोह का क्षय होना चाहिए, वीतरागता आनी चाहिए। वीतरागता और सर्वज्ञता-ये दोनों जिसमें होते हैं, वह जिन होता है। उसके द्वारा प्ररूपित मार्ग ही सही होता है।
कोरा ज्ञानवाद और कोरा क्रियावाद-दोनों मान्य नहीं हैं। केवल पढ़ते जाओ, पुस्तक के पन्ने पलटने जाओ और राग-द्वेष बढ़ता रहे—यह एक खतरनाक मार्ग है। ज्ञान के बिना भी केवल क्रिया बहुत सार्थक नहीं होती। जहां वीतरागता है, वहां ज्ञान उसके साथ जुड़ा हुआ है। जहां ज्ञान है. वहां वीतरागता जुड़ी होनी चाहिए। अन्यथा ज्ञान भी अज्ञान बन जाएगा।
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