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________________ ५० भटकाने वाले चौराहे मनुष्य गतिशील है। वह गतिशील है इसलिए उसने गंतव्य और मार्ग-दोनों का चुनाव किया है। जो बैठा हुआ है, उसके लिए मार्ग की जरूरत नहीं होती, उसके सामने कोई गंतव्य भी नहीं होता। जिसे कहीं पहुंचना है, उसे मार्ग पर ध्यान देना होगा। सही मार्ग का चुनाव एक समस्या है। पता नहीं, कब विपरीत दिशा की ओर ले जाने वाली पगडंडी मिल जाए, समस्या अधिक उलझ जाए। आजकल सड़कें बहुत बन गई हैं, पर जहां चौराहे हैं, वहां यह समस्या उभर आती है। व्यक्ति जाना कहीं चाहता है, पर वह चला कहीं जाता है। जीवन में भी ऐसी समस्याएं आती हैं। अनेक मार्ग व्यक्ति के सामने आते हैं। वह किसका चुनाव करे? किसे छोड़े? व्यक्ति को यह प्रश्न आंदोलित करता है-अनेक मार्ग हैं, किस मार्ग पर चलूं? - एक मार्ग है-खाओ, पीओ, मौज करो। दूसरा मार्ग है-तपस्या करो, कष्ट को सहन करो। तीसरा मध्यम मार्ग है-न ज्यादा कष्ट सहन करो, न ज्यादा काम करो, और भी न जाने कितने मार्ग हैं। चुनाव करना कठिन हो जाता है मनुष्य के लिए। इसी समस्या को केशी कुमारश्रमण ने प्रस्तुत करते हुए कहा-'बहुत उत्पथ-कुमार्ग हैं, मनुष्य को भटका देते हैं। क्या आप कभी भटकते नहीं हैं?' __कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासंति जंतवो। अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नस्ससि गोयमा ।। गौतम बोले-'कुमारश्रमण! मैं कभी नहीं भटकता हूं।' 'कैसे नहीं भटकते हैं आप?' 'कुमारश्रमण! जो मार्ग पर चल रहे हैं और जो उन्मार्ग पर चल रहे हैं, उन सबको मैं जानता हूं, इसलिए मैं भटकता नहीं हूं जे य मग्गेण गच्छति, जे य उम्मग्गपट्ठिया। ते सव्वे बिइया मज्झं, तं न नस्सामहं मुणी।। जो जान लेता है, वह भटकता नहीं है। जो नहीं जानता है, वह सचमुच भटक जाता है। महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जान लेना। दुनिया में अटकाने वाले बहुत हैं, भटकाने वाले बहुत हैं और पछाड़ने वाले भी बहुत हैं, किन्तु जो जानता है, वह न भटकता है, न अटकता है। राजा भोज एक संस्कृत विद्वान पर बहुत प्रसन्न हो गया। उसने प्रसन्न स्वर में कहा-'जाओ, कोष से एक लाख मुद्राएं ले लो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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