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शासन-भेद की समस्या
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अलग-अलग देश और काल की स्थितियां होती हैं। जहां भयंकर सर्दी पड़ती है, वहां लोग खुले बदन कैसे जा पाएंगे। अनेक लोग वैष्णोदेवी जाते हैं क्या वहां खुले बदन जाना हर किसी के लिए संभव है? सापेक्ष हैं नियम
सारे विधान देश-काल-सापेक्ष होते हैं। देश, काल, बुद्धि और मानस-सबका विवेक अपेक्षित होता है। यह बहुत मार्मिक कथन है-इस भूमिका-भेद को समझो–देश, काल, बुद्धि और मानस की अपेक्षा से देखो। गौतम के इस कथन का समर्थन स्थानांग में किया गया-पहले और चौबीसवें तीर्थकर के जो साधु हैं, उनके लिए पांच बातें दुर्गम हैं और बाईस तीर्थकरों के जो साधु हैं, उनके लिए वे पांच बातें सुगम हैं। वे पांच स्थान ये हैं
१. धर्म तत्त्व का आख्यान। २. तत्त्व का अपेक्षा दृष्टि से विभाग। ३. तत्त्व का युक्तिपूर्वक निदर्शन। ४. उत्पन्न परीषहों को सहन करना। ५. धर्म का आचरण करना।
जो वात एक युग में सुगम है, वही दूसरे युग में दुर्गम बन जाती है। जिन बातों का आज आचरण करना आसान नहीं है, उनका कभी आचरण करना बहुत सहज रहा है। इसका कारण है भूमिका का भेद। किस युग में आदमी की मनोदशा कैसी होती है? मति और बुद्धि कैसी होती है? हर युग में आदमी की मति और बुद्धि समान नहीं होती। सहिष्णुता आदि की मनोवृत्ति का अन्तर होता है। यह सारा भूमिका का भेद है। एक ओर विधान कठिन और कठिनतर है, दूसरी ओर सुगम और सुगमतर है। यह कोई विरोध नहीं है, साधुत्व का अन्तर नहीं है। यह है भूमिका का भेद-शिष्यों की बुद्धि का भेद, विवेक का भेद। एक के लिए कहा गया-'करेमि भंते! सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।' इतना कहना ही पर्याप्त हो गया। दूसरे व्यक्ति को उसका विस्तृत प्रत्याख्यान कराया गया, प्राणातिपात आदि अठारह पापों का विश्लेषण-पूर्वक प्रत्याख्यान कराया गया। प्रश्न हो सकता है-आपने कब कहा था ऐसा करने के लिए। तर्क को रोका नहीं जा सकता। तर्क में से प्रतितर्क निकल आता है।
एक महिला के बाएं घुटने में दर्द हो गया। डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कहा- यह बुढ़ापे का दर्द है।' महिला को बुढ़ापा शब्द प्रिय नहीं लगा। उसने डॉक्टर के कथन का प्रतिवाद किया.-'अगर बुढ़ापे का दर्द है तो बांएं घुटने में ही क्यों है? दाएं घुटने में क्यों नहीं है? यदि बुढ़ापा है तो बाएं भाग में भी आएगा, दाएं भाग में भी आएगा। दोनों घुटने साथ-साथ जन्मे हैं।'
इस तर्क का क्या उत्तर दिया जा सकता है? वस्तुतः सचाई के साथ तर्क चल नहीं सकता। बहुत सारे तर्क ऐसे ही होते हैं, जो लंगड़ाते से चलते हैं। जहां उबड़-खाबड़ स्थान आता है, वहां हालात और अधिक खराब हो जाते हैं। गौतम ने जो भेद बतलाया, वह बहुत वैज्ञानिक लगता है, सत्य प्रतीत होता है। एक
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