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________________ ३०४ महावीर का पुनर्जन्म शादी के बाद राजकुमारी ने पता लगाया-मेरा पति कैसा है? कितना बुद्धिमान है! राजकुमारी ने उससे बातचीत की। वह ठोठ भट्टारक निकला। राजकुमारी के दिल को आघात लगा। उसने सोचा-ऐसे सधवा जीवन से तो वैधव्य का जीवन ही श्रेयस्कर है। किस मूर्ख आदमी से मेरा पाला पड़ा है। मुझे कहां फंसा दिया! मुझे नहीं चाहिए ऐसा पति। राजप्रासाद का झरोखा। कालिदास राजकुमारी के पास खड़ा था। वह उसकी ओर देख रहा था। सहसा राजकुमारी ने उसे धक्का दिया। कालिदास संभल नहीं सका। वह झरोखे से नीचे गिर गया। कालिदास अनपढ़ था, सब कुछ था पर काली का बड़ा भक्त था। जो व्यक्ति एक शक्ति को पकड़ लेता है, वह कहीं से कहीं चला जाता है। जैसे ही राजकुमारी ने उसे नीचे गिराया, वह 'काली' की रट लगाने लगा। वह सीधा काली मंदिर में जा गिरा। वह 'काली' 'काली' का जप करने लगा। ऐसा कोई योग मिला-काली का वरदान मिल गया। न कोई हड्डी टूटी और न कहीं चोट लगी। दिमाग को कुछ ऐसा झटका लगा कि स्रोत खुल गया। कालिदास का रूप बदल गया। वह खड़ा हुआ। अपने अंतःपुर में पहुंचा। दरवाजा खटखटाया। राजकुमारी ने सोचा-कौन आ गया? वह अज्ञात आशंका से आशंकित हो उठी। उसने पूछा-'कौन है?' कालिदास ने संस्कृत भाषा में कहा-कपाटमुद्घाटय-दरवाजा खोलो। उसके मुख से सहज ही ये शब्द फूट पड़े-'अस्ति कश्चित् वाविशेषः-यह कोई विद्वान व्यक्ति है।' राजकन्या ने सोचा-यह कौन है? इसका बोलने का ढंग भी बदल गया है। यह कोई विद्वान व्यक्ति लगता है। यह कोई मूर्ख नहीं है। कम से कम मेरा पति तो नहीं है। राजकुमारी को डर था-कहीं मेरा पति मरकर भूत तो नहीं बन गया है? यदि वह भूत बनकर आ गया तो क्या होगा? यदि कोई विद्वान है तो वह बिना सूचना कैसे आया? कहीं इस घटना का पता तो नहीं लग गया है? महाराजा को यदि सब ज्ञात हो गया तो समस्या खड़ी हो जाएगी। कालिदास ने चिन्तित राजकन्या को संबोधित करते हुए कहा-'कपाटमुद्घाटय शुभ्रनेत्रे, समागतोऽहं कविकालिदासः'-कपाट खोलो, मैं कवि कालिदास आ गया हूं। अरे! यह तो मेरे पति का नाम है। यह वापस कैसे आ गया? यह कवि कब से बन गया? कैसे बन गया? चिन्तनमग्न राजकुमारी ने कपाट के छिद्रों से देखा-वही कालिदास है। कपाट खोलने के सिवाय विकल्प ही नहीं था। राजकुमारी ने कपाट खोल दिए। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। राजकुमारी के हाथ जुड़ गए। उसने विनम्रता से पूछा-'पतिदेव! आप गिर गए थे। कहीं चोट तो नहीं लगी?' 'नहीं! मैं एकदम स्वस्थ और प्रसन्न हूं।' 'आप कहां चले गए थे?' 'देवी! मैं कहीं नहीं गया था, अपने आपमें खो गया था।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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