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________________ मिलन चांद और सूरज का ३०३ यह महत्त्वपूर्ण बात है-धर्म का निश्चय प्रज्ञा से होता है। शाश्वत सत्य और सामयिक सत्य के टकराव को कभी रोका नहीं जा सकता। वेशभूषा, महाव्रत के प्रकार-ये सारे सामयिक सत्य हैं। वीतरागता, निर्वाण-ये सारे शाश्वत सत्य हैं। इन दोनों सत्यों में टकराव चलता रहा है और उसका समाधान भी किया गया है। शाश्वत और सामयिक के इस संघर्ष को प्रज्ञा के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। प्रज्ञा है आंतरिक शक्ति प्रश्न है-प्रज्ञा क्या है? तीन तत्त्व हैं-मन, बुद्धि और प्रज्ञा। मन का काम है-सोचना, चिन्तन करना। बुद्धि का काम है-विवेक करना, निर्णय करना। प्रज्ञा का काम है-साक्षात्कार करना, अनुभूति करना। प्रज्ञा की परिभाषा की गई है-जीव की वह शक्ति, जो ज्ञान का हेतु बनती है। ज्ञान है कार्य, प्रज्ञा है कारण। प्रज्ञा जागती है पर प्रज्ञा है जीव को शक्ति। इसमें किसी के उपदेश या शास्त्र के अध्ययन की अपेक्षा नहीं होती। यह इन सबसे निरपेक्ष है, जो अपने भीतर से जागती है भीतर का जो स्रोत है, वह आंतरिक शक्ति है और उसका बाह्य प्रयोग है ज्ञान। बहुत दुर्लभ है प्रज्ञा का जागरण। मन की शक्ति भी बहुत दुर्लभ है। स्मृति, चिन्तन और कल्पना शक्ति-ये मन के तीन प्रमुख कार्य हैं। इनका विकास भी बहुत कम लोगों में होता है। ऐसे व्यक्ति बहुत कम हैं, जो सही ढंग से चिन्तन और कल्पना करते हैं। इन्द्रियों का विकास हमारा सामान्य विकास है। उससे अगला स्तर है मानसिक विकास। इससे भी दुर्लभ है बुद्धि का विकास। विवेक ओर निर्णय की शक्ति बहुत कम लोगों में विकसित होती है। प्रज्ञा का विकास सर्वाधिक दुर्लभ है। हम पूरे वैचारिक साहित्य को देखें, तो कुछ-कुछ व्यक्ति ऐसे आते हैं, जिन्हें मनस्वी, बुद्धिमान् और प्रज्ञावान कहा जा सकता है। सब जन्मना बुद्धिमान और मनस्वी नहीं होते। हम कालिदास के जीवन का देखें। एक समय था-वह न मनस्वी था और न बुद्धिमान, प्रज्ञा की तो बात ही नहीं थी। वह रोज जंगल जाता, लकड़ियां काटता और उन्हें बेचकर अपनी आजीविका चलाता। एक दिन वह पेड़ पर बैठा डाली को काट रहा था और उस डाली को काट रहा था जिस पर वह वैठा था। मंत्रीपुत्र ने उसे देखा। वह खोज रहा था किसी बुद्धू आदमी को। उसने कालिदास को देखा और सोचा-काम बन गया। जिसकी खोज थी, वह मिल गया। इससे अधिक मूर्ख और कौन होगा? जो जिस डाली पर बैठा था उसे ही काट रहा हो। __ मंत्रीपुत्र के मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी। वह राजकुमारी से बदला लेना चाहता था। राजकुमारी के साथ कुछ ऐसा घटित हुआ, जिससे उसकी प्रतिशोध की आग भड़क उठी। उस आग को शांत करने का अवसर मिल गया। मंत्रीपुत्र ने ऐसा षड्यंत्र रचा, जिसके कारण कालिदास का विवाह राजकुमारी के साथ करा दिया। इस दुनिया में ऐसे अनहोने षड्यंत्र भी सफल हो जाते हैं। एक राजकुमार की अनपढ़ लकड़हारे के साथ शादी होना भी ऐसी ही घटना थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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