________________
४७
मिलन चांद और सूरज का
इस दुनिया में निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। प्रकृति का नियम है संघर्ष । कभी दो व्यक्तियों में टकराव हो जाता है, कभी दो वस्तुओं में टकराव हो जाता है। दो बसें टकरा जाती हैं, कार और ट्रेन टकरा जाती हैं। विचार और परम्पराओं का भी संघर्ष होता है।
ढाई हजार वर्ष पहले ऐसा ही एक संघर्ष का रूप सामने आया। वह संघर्ष दो परम्पराओं में परिलक्षित भिन्नताओं से उत्पन्न था।
श्रावस्ती में भगवान महावीर के शिष्य गणधर गौतम पधारे और उसी ग्राम में भगवान् पार्श्व की परम्परा के आचार्य केशी कुमारश्रमण आए। दोनों सैकड़ों शिष्यों के समूह से परिवृत थे। भिक्षाटन के लिए नगर में घूमते हुए दोनों परम्परा में दीक्षित मुनि परस्पर मिले। पार्श्व की परम्परा के मुनियों के मन में विकल्प उभरा-ये कौन हैं? ये कैसे साधु हैं? ये केवल श्वेत वस्त्रधारी हैं? महावीर के शिष्यों के न में भी यही प्रश्न उठा-ये कौन हैं? ये कैसे साधु हैं? ये बहुमूल्य विविध रंग वाले वस्त्र पहने हुए हैं। दोनों परम्पराओं के शिष्यों के मन में तीव्र उद्वेलन हुआ। जिज्ञासा का स्रोत फूट पड़ा। केशीकुमार के शिष्यों ने गौतम के शिष्यों से पूछा-'आप कौन हैं?'
गौतम के शिष्य बोले-'हम साधु हैं?' 'आप क्या करते हैं?' । 'पांच महाव्रतों का पालन करते हैं।' 'आपने श्वेत वस्त्र क्यों पहने हैं?' 'साधु के वस्त्र श्वेत ही होने चाहिए।' 'आपका लक्ष्य क्या है?' 'मोक्ष।'
यही प्रश्न गौतम के शिष्यों ने केशी कमारश्रमण के शिष्यों से पूछा-'आप कौन हैं?'
'हम साधु हैं।' 'आप क्या करते हैं?' 'हम चातुर्याम धर्म का पालन करते हैं।' 'आपने यह रंग-बिरंगा वेश क्यों धारण किया है?" 'हमारी परम्परा के साधु ऐसे ही वस्त्र पहनते हैं।' 'आपका लक्ष्य क्या है?' 'मोक्ष।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org