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________________ ३०० महावीर का पुनर्जन्म अहं च भोयरायस्स तं च सि अंधगवण्हिणो। मा कुले गंधणा होमो, सजमं निहुओ चर।। जइ तं काहिसि भावं, जा जा दच्छसि नारिओ। वायाविद्धो व्व हडो, अट्टिअप्पा भविस्ससि ।। गिरे नहीं, संभल गए राजीमती का प्रतिबोध बुद्धिमानी से परिपूर्ण था। बुद्धिमान व्यक्ति समझाता है तो बात गले उतर जाती है। जो बात हजार बार कहने से समझ में नहीं आती, वह एक बुद्धिमान द्वारा समझाने पर समझ में आ जाती है। एक सेठ को शराब का व्यसन था। अनेक लोगों ने इसे छोड़ने की प्रेरणा दी पर सेठ ने आदत नहीं छोड़ी। एक दिन एक व्यक्ति ने नौकरी की प्रार्थना की। सेठ ने कहा-'मुझे नौकर की जरूरत है पर निकम्मे नौकर की जरूरत नहीं है। तुम अगर काम पूरा कर सको तो तुम्हें नौकरी पर रख सकता हूं।' नौकर ने पूछा-'आपका काम क्या करना है?' सेट ने कहा- 'मैं जो काम कहं, उसे पूरा करना है। कुछ ऐसे नौकर आते हैं वे पूरा काम कर नहीं करते। मुझे वह नौकर अच्छा लगता है, जिसे एक साथ काम के लिए कहता हूं तो वह उससे जुड़े सारे काम एक साथ कर देता है।' नौकर बुद्धिमान था। उसने विनम्रता से कहा-'आप मुझे सेवा का अवसर दें। मैं ऐसा प्रयत्न करूंगा।' सेठ ने उसे नौकरी पर रख लिया। शाम का समय हुआ। सेठ ने कहा-'जाओ, शराब की बोतल ले आओ।' वह कुछ देर बाजार में घूमकर वापस आ गया। उसने शराब की बोतल सामने रख दी। एक दवाइयों का बक्सा भी रख दिया। साथ-साथ डाक्टर को भी ले आया। कफन लाकर भी रख दिया। एक गाड़ी में चंदन की लकड़ियां भी आ गई। घर के बाहर अनेक लोग एकत्रित हो गए। सेठ यह सब देख अवाक रह गया। उसने कहा-'यह क्या धंधा है? तुमने यह सब क्या किया है?' नौकर बोला-'सेठजी! आपने ही तो कहा था-अधूरा काम नहीं करना है, पूरा काम करना है। मैंने वही किया है। आपने शराब मंगाई। शराब पीने वाला निश्चित ही बीमार होता है इसलिए दवा का बक्सा भी ले आया। बीमार को दवा डाक्टर की सलाह से देनी चाहिए इसलिए डाक्टर को भी बुला लाया। . शराब पीने वाला जल्दी मरता है इसलिए कफन और लकड़ी भी ले आया। मैंने लोगों को भी कह दिया है सेठ की शवयात्रा में आने के लिए। आस-पास के सारे लोग इधर ही आ रहे हैं।' यह बात सेठ के मन को तीर जैसे चुभ गई। उसने शराब की बोतल फैंक दी। नौकर से बोला-'आज से शराब छोड़ता हूं। तुम सबको यहां से विदा करो।' जो समझदार और बुद्धिमान होता है, वह ऐसी बात कहता है कि तत्काल काम हो जाता है। राजीमती ऐसी ही महिला थी। उसके तर्कपूर्ण संबोधन रथनेमि की मूच्र्छा को तोड़ दिया। वे गिरे नहीं, संभल गए। उनका रूपान्तरण हो गया। रथनेमि को राजीमती ने उबारा। वे भोगों से विरत हो. उग्र तप तप कर पुरुषोत्तम बन गए और उनका घटनाक्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरक इतिहास बन गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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