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महावीर का पुनर्जन्म वासनाओं से संचालित न हो, ऐसे व्यक्ति का मिलना कठिन है। वही व्यक्ति ईश्वर हो सकता है, जो इनके द्वारा संचालित नहीं है। राजीमती की दृढ़ता
राजीमती ने कहा-'आप इस प्रकार का आचरण करेंगे तो श्रामण्य के ईश्वर नहीं रहेंगे। जब श्रामण्य के ईश्वर नहीं हैं तब श्रामण्य का बोझ ढोने की जरूरत क्या है?'
राजीमती के इस तर्क से रथनेमि की चेतना प्रकम्पित हो उठी। वे संभल गए। संभले ही नहीं, कैवल्य को उपलब्ध हो गए।
राजीमती के तर्क बहुश्रुतता के परिचायक थे। बहुश्रुतता के साथ राजीमती का जो संकल्प था, वह भी बहुत विलक्षण था।
रथनेमि ने राजीमती से कहा-'चलो! हम फिर राज्य में चलें, गृहस्थी में रहें, मनोरम भोगों को भोगें। कालान्तर में फिर मुनि बन जाएंगे। तुम देखो-कैसा वैभव है! कैसा ऐश्वर्य है! पहले उसका उपभोग कर लें।
इस स्थिति में राजीमती ने जिस धृति और दृढ़ता का परिचय दिया, वह सचमुच प्रेरक है। राजीमती ने कहा- 'मुनिवर! आप क्या कह रहे हैं, क्या आप रूपवान होने के कारण ऐसा कह रहे हैं? यदि आप रूप से वैश्रमण हैं तो भी मुझे आपकी आवश्यकता नहीं है। मैं आपकी स्वप्न में भी इच्छा पूरी नहीं कर सकती। यदि आप साक्षात इन्द्र हैं तब भी आप मेरे लिए कोई काम के नहीं हैं
जइ सि रूवेणवेसमणो, ललिएण नलकूबरो।
तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो।।
राजीमती के संकल्प और मनोबल का निदर्शन हैं ये वाक्य। कौन कहता है-नारी कमजोर होती है, दुर्वल और अवला होती है? वह दुर्वल नहीं है। वल सबमें है, पराक्रम और पुरुषार्थ सबमें है। प्रश्न है जागरण का। हम केवल शरीरशास्त्रीय दृष्टि से ही विचार न करें। योग के प्राचीन आचार्यों ने जो चिन्तन दिया है, अर्द्धनारीश्वर की जो कल्पना की है, वह बहुत रहस्यपूर्ण है। दक्षिणांग
और वामांग की स्वीकृति बहुत महत्त्वपूर्ण है। स्त्री और पुरुष में अन्तर इतना ही है कि स्त्री की शक्ति का स्रोत है बाया अंग और पुरुष की शक्ति का स्रोत है दक्षिण अंग। अगर स्त्री अपनी वामांग शक्ति को पहचान सके तो वह पुरुष से कम नहीं है। यदि पुरुष अपने दक्षिण अंग की शक्ति को पहचान सके तो वह स्त्री से कम नहीं है। पुरुष भी स्त्री बन जाता है और स्त्री भी पुरुष बन जाती है। सवाल है अपनी-अपनी शक्ति को पहचानने का। प्रकृति की रचना ऐसी ही है कि दक्षिण और वाम-दोनों अंग समान नहीं मिलते। व्यक्ति को अपनी ही दोनों आंखों से समान दिखाई नहीं देता। दोनों एक साथ खुलती है तो पता नहीं चलता। यदि एक आंख को बन्द कर देखें तो ऐसा लगता है-सामने अंधेरा ही अंधेरा है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें दोनों कानों से बराबर सुनाई नहीं देता। एक कान ठीक काम करता है, दूसरा नहीं। दोनों अंग समान काम करें, यह सबके लिए कठिन है किन्तु एक का काम दूसरा कर देता है।
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