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________________ रूपान्तरण राजा को यह बात कैसे मान्य हो सकती थी । उसने कहा- 'तुम गलत कहते हो। मैं ऐसा नहीं हूं, जो पत्नी के कहने से निर्णय लूं ।' 'आप क्या, सारी दुनिया ही स्त्रियों के कहने पर चलती है ।' 'दुनिया क्या करती है, मुझे पता नहीं पर मैं अपने स्वतंत्र दिमाग से निर्णय लेता हूं। मुझे जो उचित लगता है, वही काम करता हूं।' 'महाराज ! आप विवाद न करें। यह सारी दुनिया का नियम है, आप इसके अपवाद नहीं हो सकते।' २६७ 'तुम इसे प्रमाणित करो। यदि प्रमाणित हो जाएगी तो मैं मान लूंगा ।' 'मैं जल्दी प्रमाणित कर दूंगा इस तथ्य को ।' एक सप्ताह बाद मंत्री ने एक राजाज्ञा प्रसारित की— 'आज नगर के बाहर सव नागरिकों को आना है। वहां पूर्व और पश्चिम में दो खेमे बनाए गए हैं। जो लोग अपनी स्त्रियों के कहे अनुसार चलते हैं, उन्हें पूर्व के खेमे में जाना है । जो लोग अपनी इच्छा से चलते हैं, स्त्रियों का कहना नहीं मानते, उन्हें पश्चिम के खेमे में जाना है ।' राजाज्ञा की घोषणा हो गई। उस समय राजाज्ञा का उल्लंघन करना असंभव सा कार्य था । शाम को सब लोग आने लगे। पूरा नगर पुरुषों से खाली हो गया। राजा और मंत्री भी वहां पहुंच गए। राजा ने देखा - पूर्व का खेमा खचाखच भरता जा रहा है और पश्चिम का खेमा एकदम खाली पड़ा है। राजा का चेहरा उदास हो गया। उसने सोचा- क्या मेरा कथन असत्य होगा? सब पूर्व के खेमे की ओर ही जा रहे हैं। मंत्री की बात सही होगी? राजा गंभीर हो गया। मंत्री मन ही मन मुस्करा रहा था। कुछ क्षण बीते, एक व्यक्ति पश्चिम के खेमे में गया। राजा बोला - 'मंत्री! तुम सही हो पर एकदम गलत में भी नहीं हूं। देखो! एक व्यक्ति पश्चिम के खेमे में भी गया है। वह बहुत समझदार और स्वतंत्र चिन्तन वाला है ।' 'महाराज ! आप जरा ठहरें । अभी पता चल जाएगा - वह स्वतंत्र चिन्तन का परिणाम है या नहीं ।' 'क्या इसमें संशय है?" 'हां महाराज!' यह कहकर मंत्री ने कर्मचारियों को आदेश दिया- 'जो व्यक्ति पश्चिम के खेमे में गया है, उसे बुलाओ ।' कर्मचारी उसे बुला लाए। वह राजा के सामने हाथ जोड़े खड़ा था। मंत्री ने पूछा - 'भई ! सब लोग पूर्व के खेमें में गए, तुम उधर क्यों नहीं गए ।' उस व्यक्ति ने जवाब दिया- 'महाराज ! जब मैं घर से चला तब पत्नी ने कहा था-भीड़भाड़ में मत फंस जाना । पूर्व के खेमे की ओर बहुत भीड़ थी इसलिए मैं वहां नहीं गया।' राजा यह सुनकर अवाक रह गया । यह कथा बहुत मार्मिक है। कौन व्यक्ति ऐसा है, जो अपनी वृत्तियों और वासनाओं के द्वारा संचालित नहीं है । यह संभव है - बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिल सकते हैं, जो स्त्रियों के द्वारा संचालित न हों किन्तु अपनी वृत्तियों और www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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