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________________ जाने किन किन का आश्रय लिया। इस पर एक सुन्दर काव्य लिखा जा सकता है और जिसमें अनेक तत्त्वों का हृदयस्पर्शी चित्रण किया जा सकता है। जैन परम्परा की साहित्य विधा में यह एक अनूठा प्रयोग है। इस सचाई से इन्कार नहीं किया जा सकता-तव तक कोरा सिद्धांत ग्राह्य नहीं बनता, गले नहीं उतरता, जब तक उसके साथ साहित्यिक सरसता का योग नहीं होता। सरसता बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। एक प्रकार से अहिंसा और करुणा का व्यावहारिक रूप है सरसता। काव्य को सरस बना दिया जाए, उसमें कठोरता न रहे। क्रूरता का व्यावहारिक रूप है कठोरता। महाभारत लिखा गया किन्तु इतनी सरसता के साथ कि पढ़ने में रस आता है, बात सीधी गले उतर जाती है। यदि वही वात धमाके के साथ कही जाए तो ऐसा लगेगा-खीर में मूसल डाल दिया गया है। व्यक्ति बात सुनते ही चमक जाता है, गले उतरने की बात कहीं रह जाती है। आदर्श हैं अरिष्टनेमि उत्तराध्ययन सूत्र की यह विशेषता है कि इसमें तथ्य को सरसता से समझाया गया है। यह कथा-सृजन का भी आधार सूत्र है। इसके आधार पर अनेक काव्यों का सृजन और प्रणयन किया जा सकता है। दस से अधिक काव्य बनाने की वस्तु-सामग्री उत्तराध्ययन में विद्यमान है। अपेक्षा है कथावस्तु को हृदयंगम करने की, उसे काव्यात्मक रूप देने की और सरसता के ढांचे में ढ़ालने की। इस सन्दर्भ में अरिष्टनेमि का प्रसंग बहुत मार्मिक और हृदयग्राही है। इस कथावस्तु में इतने घुमाव हैं कि उसके आधार पर अनेक तथ्यों की सरस अभिव्यक्ति सम्भव बन सकती है। ___ हमारे लिए अरिष्टनेमि एक आदर्श हैं। उनके जीवन प्रसंग से हम अधिक सीख सकें या नहीं, पर कुछ अवश्य सीखें। अस्वीकार की शक्ति, असहयोग की शक्ति, प्राणी मात्र के प्रति करुणा और अहिंसा का विकास-ये बातें जीवन में आंशिक रूप से उतरनी शुरू हो जाए, क्रूरता धुल जाए, प्राणिमात्र के प्रति करुणा जागे। मनसा वाचा कर्मणा मैं किसी को दुःखी बनाने का निमित्त न बनूं, यह भावना बलवती बने, इतना कुछ घटित कर सकें तो अरिष्टनेमि की स्मृति हमारे लिए बहुत कल्याणकारी और वरदायी सिद्ध होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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