SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ महावीर का पुनर्जन्म कोई बुरी बात नहीं है। जो सत्य में चलेगा, उसे सदा अल्पमत में चलना पड़ेगा। सत्य के साथ कभी बहुमत जुड़ता नहीं है। शायद यही कारण रहा-महावीर के साथ बहुत लोग नहीं जुड़े, दूसरों के साथ जुड़ गए। अरिष्टनेमि ने जो प्रयोग किया, वह सत्याग्रह या असहयोग का नया प्रयोग था। इस प्रयोग की किसी ने किसी रूप में व्याख्या की और किसी ने किसी रूप में। इसकी सामयिक और शाश्वत—दोनों सन्दर्मों में व्याख्या की जा सकती है। वह एक महान प्रयोग था। विवाह का स्वीकार या अस्वीकार बहुत छोटी बात है। बहुत लोग विवाह नहीं करते। विवाह को ठुकराने वाले भी बहुत हैं। कुछ लोग अहंकारी होते हैं। वे अपने अहंकार के कारण विवाह को छोड़कर चले जाते हैं। कुछ लोग लोभी होते हैं, वे दहेज के कारण विवाह को छोड़कर चले जाते हैं। क्या विवाह का अस्वीकार बड़ी बात है? समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं पढ़ने को मिलती रहती हैं-दहेज पूरा नहीं मिला, विवाह करने से इंकार कर दिया। वर और वधु पक्ष के बीच इतना तनाव और झगड़ा हो जाता है कि विवाह के लिए आई बारात को बैरंग लौटना पड़ता है। यह विवाह का अस्वीकार है पर कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है वह सिद्धांत, जो अस्वीकार की पृष्ठभूमि में छिपा है। नेम-राजुल वस्तुतः इस घटना से अहिंसा का विराट सिद्धांत, सत्याग्रह या सविनय असहयोग का जो सिद्धांत फलित हो रहा है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। अरिष्टनेमि चले गए, राजीमती से विवाह नहीं हुआ। राजीमती अरिष्टनेमि की प्रतीक्षा करती रह गई। यह घटना घटित हो गई और इससे उपजा सिद्धांत शेष रह गया। इस घटना प्रसंग को आधार बनाकर जैन आचार्यों ने बहुत कुछ लिखा। नेम-राजुल पर काव्य लिखे गए। गीत, नाटिकाएं, लोर आदि अनेक विधाओं में इस प्रसंग को उकेरा गया। आज के साहित्यकार मानते हैं-जैनों में श्रृंगार का कोई विषय बचा है तो वह नेम-राजुल का प्रसंग बचा है। कालिदास ने मेघदूत लिखा। ऐसा घटना प्रसंग कोई जैन कवि नहीं लिख सका इसीलिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते थे—'जैन मुनि कभी कवि नहीं हो सकता। काव्य के लिए श्रृंगार और रौद्र-ये दो रस चाहिए। जैन दोनों से नफरत करते हैं। ऐसा काव्य, जैसा मेघदूत है, जैन कवि कभी नहीं रच सकता। यदि जैन मुनि ऐसा काव्य लिख दे तो शायद जैन समाज उसे मानने के लिए तैयार ही न हो। इस स्थिति में जैन कवि क्या करते? एक कहावत चल पड़ी-यदि शिव-पार्वती न होते तो वैष्णव कवि क्या करते और यदि अरिष्टनेमि-राजीमती न होते तो जैन कवि क्या करते? इस विषय पर विशाल साहित्य रचा गया है। उसमें बहुत कुछ अनजाना रहा। कुछ विद्वानों के प्रयत्न से उस साहित्य की सूचियां बन गई और वह साहित्य प्रकाश में भी आया। यह बहुत विशिष्ट प्रसंग है-अरिष्टनेमि चले गए, उस समय राजीमती की स्थिति का जो चित्रण किया गया है, वह मेघदूत की अनुकृति सा बन जाता है। यक्ष ने अपना संदेश मेघ के माध्यम से प्रेषित किया और राजीमती ने न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy