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________________ असहयोग का नया प्रयोग २६१ महावीर के समय में भी धार्मिक लोग हिंसा करते थे इसलिए महावीर को समझाना पड़ा-अंगारा अपनी हथेली पर रखो, हथेली जल जाएगी। तुम सोचो-जिस प्रकार अंगारे से तुम्हारे हाथ जलते है, वैसे ही दूसरों के जलते हैं। प्राचीन काल में ऐसी करता चलती थीं-व्यक्ति के कान में गर्म गर्म सीसा डाल दिया जाता, अंग भंग कर दिया जाता। महावीर को इन सारे संदर्भो में अहिंसा के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अहिंसा के क्षेत्र में कई नई दृष्टियां दीं। कैसे मनुष्य की चेतना उदात्त बने और जो क्रूरता के बीज हैं, वे नष्ट हो जाएं। यह अभियान महावीर के समय ही नहीं चला, उससे बहुत पहले प्रारंभ हो चुका था। अरिष्टनेमि का प्रसंग इसका स्वयंभू साक्ष्य है। अरिष्टनेमि ने उस समय जो कार्य किया, उसे आज की भाषा में सविनय अवज्ञा आंदोलन या सविनय असहयोग कहा जा सकता है। अरिष्टनेमि ने कहा-मैं विवाह नहीं करूंगा। सत्याग्रह : असहयोग अरिष्टनेमि विवाह करने के लिए गए थे और विवाह करने से अस्वीकार कर दिया। यह असहयोग आंदोलन का उदात्त रूप था। प्राचीन काल में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं, जिनमें उद्दण्डता के साथ नहीं किन्तु सविनय असहयोग कया गया। वे उस घटना के साथ नहीं जडते. जिससे सहमत नहीं होते। मैं यह नहीं करूंगा, यह निश्चय कर लेते। उनमें अस्वीकार की शक्ति प्रबल थी। जो व्यक्ति जीना जानता है, अकेला रहना जानता है, स्वयं में आनन्द की खोज कर लेता है, उसे असहयोग करने में कोई कठिनाई नहीं होती। जिसके मन में कोई चाह और आकांक्षा नहीं होती, जो अपने आप में सन्तुष्ट है, वह असहयोग कर सकता है। अरिष्टनेमि ने सचमुच असहयोग किया। दूसरे शब्दों में इसे सत्याग्रह कहा जा सकता है। सत्याग्रह और असहयोग-ये दो गांधीयुग के विशेष शब्द हैं, पर इनका प्रयोग अतीत में भी हो चुका है। अरिष्टनेमि ने रथ को मोड़ने का आदेश किया। रथ विवाह मण्डप की ओर न जाकर दूसरी दिशा में मुड़ गया। यह देख सव अवाक् रह गए। अनेक लोगों ने अरिष्टनेमि से कहा- 'आप इस प्रकार न मुड़ें। ऐसा करना ठीक नहीं है।' अरिष्टनेमि अपने निश्चय पर अटल रहे। श्रीकृष्ण, वासुदेव आदि के आग्रह को भी अरिष्टनेमि ने अस्वीकार कर दिया। राजीमती की चीख भी उनके निश्चय को नहीं बदल सकी। अरिष्टनेमि ने पुनः मुड़कर नहीं देखा। उनके मन में यह भाव जाग गया-मेरे कारण कितने प्राणी पीड़ित और दुःखी हो रहे हैं। मैं किसी को सताना नहीं चाहता, दुःखी और पीड़ित करना नहीं चाहता। मैं यह सब नहीं देख सकता। मुझे अपने आप में रहना है, अकेले में रहना है। वे सचमुच अकेले वन गए। जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है. उसे अकेला रहना या चलना स्वीकार करना होता है। महावीर हो, अरिष्टनेमि या गांधी, अहिंसा की आस्था वाले व्यक्ति को अकेले चलना होता है। ना वहमत की बात देखेगा, वह कभी ऐसा नहीं कर पाएगा। वह सोचेगा- अमुक व्यक्ति क्या कर रहा है? शायद इसीलिए गांधीजी ने कहा था-बहाल का अर्थ है नास्तिकता। अल्पमत में होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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