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________________ ४५ असहयोग का नया प्रयोग हम प्रातःकाल जैन विश्व भारती परिसर में गमन योग कर रहे थे। एक स्थान पर कुछ देर रुके। मैंने देखा-चिडिया बहत तेजी से आ रही है और फुदक-फुदक कर वापस जा रही है। ध्यान दिया तो पता चला-मक्खी जैसे जीव वहां घूम रहे थे। चिड़िया उन्हें चट करती जा रही थी। वह उन्हें बहुत फुर्ती के साथ चट कर रही थी। बचाव का कोई विकल्प उन जीवों के सामने नहीं था। मन में प्रश्न उभरा-इस दुनिया में शक्ति का सिद्धान्त है। जिसके पास शक्ति है, वह कुछ भी कर लेता है। उन जीवों ने चिड़िया का क्या बिगाड़ा? प्रश्न यह नहीं है कि उन जीवों ने क्या बिगाड़ा या क्या नहीं बिगाड़ा? प्रश्न है शक्ति का। शक्ति किसके पास है। इस शक्ति के सिद्धान्त के आधार पर यह स्वर उच्चरित हुआ-जीवो जीवस्य जीवनम्। मात्स्यन्याय का अर्थ यही है-बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। यह सिद्धांत दुनिया के इस छोर से उस छोर तक व्यापक बना हुआ है। बड़े जीव छोटे जीवों को निगलते जा रहे हैं, खाए जा रहे हैं। शायद प्रकृति के इस नियम के साथ ही मांसाहार चलता है। उसको कैसे स्वाभाविक माना जाए? बेचारे मूक पशु हैं। उनमें सामर्थ्य नहीं है इसीलिए शिकार भी चल रहा है। कितने निरीह प्राणी मारे जा रहे हैं! प्रसाधन सामग्री के लिए न जाने कितने पशुओं का वध किया जा रहा है। मनुष्य के कोरा प्रसाधन होता है और हजारों प्राणी मौत के मुंह में चले जाते हैं। आदमी मुलायम जते पहनता है, मलायम बेग रखता है। वे मलायम कैसे बनते हैं? बछडा जन्मता है। थोड़ा बड़ा होते ही उसको पीट-पीट कर चमड़ी को मुलायम कर दिया जाता है। उस जीवित बछड़े की चमड़ी से बनते हैं ये मुलायम जूते और मुलायम बेग। यह क्रूरता का निदर्शन है। शक्ति और क्रूरता ऐसा लगता है-शक्ति और क्रूरता जुड़ी हुई है। क्रूरता और शक्ति को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। दोनों साथ-साथ चलते हैं। लोगों को मखमली टोपियां अच्छी लगती हैं। कैसे बनती हैं ये टोपियां? न जाने कितनी निरीह प्राणियों को सताया और मारा जाता है तब इन चीजों का उत्पादन सम्भव बनता है। आदमी इन प्राणियों की करुण आह से बने पदार्थों को सुख और सुविधा का कारण मानता है। यह कहना चाहिए-शक्ति का सिद्धान्त सार्वभौम है तो क्रूरता का सिद्धान्त भी सार्वभौम है। कुछ पशु मांसाहारी हैं। उनके लिए क्रूरता कहें या न कहें किन्तु शक्ति का सिद्धान्त स्पष्ट है। उनका यह स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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