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चौर्य से अचौर्य की प्रेरणा
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जगी? सैकड़ों लोग विवाह करने जाते हैं, आचार्य भिक्षु उन सबको नहीं समझा पाए। जिस व्यक्ति की उपादान चेतना प्रबल होती है, क्षयोपशम शक्तिशाली होता है, वह जाग जाता है। बीज को अंकुर बनना है, उसे मिट्टी, पानी और खाद का योग मिला, वह फूट पड़ा। बीज में उपादान शक्ति है। निमित्त मिला और अंकुरित हो गया।
अनेकान्त दृष्टि को मानने वाला किसी एक बात के आधार पर निर्णय नहीं करता। निर्णय करते समय सावधानी बरतने की जरूरत है। हम केवल बाहर में ही न उलझ जाएं। जो व्यक्ति आत्म-निरीक्षण नहीं करता, अपनी अपर्णताओं को नहीं देखता, अपनी आत्मा पर आए आवरणों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करता या अपाय-विचय नहीं करता, वह शुक्ल ध्यान में, साधना की उच्च श्रेणी में जाने का अधिकारी नहीं बनता। शुक्ल ध्यान में वही व्यक्ति जा सकता है, जिसने अपाय विचय और विपाक विचय किया है। महामंत्र शांतिपूर्ण जीवन का
__‘पर से हट कर अपने आपको देखें' इससे बड़ा अध्यात्म का सूत्र नहीं है। किसी पर आरोपण मत करो। 'उसने मेरा यह कर दिया, मेरा काम बिगाड़ दिया,' यह बुद्धि जब तक रहेगी, मिथ्या दृष्टिकोण बना रहेगा। चाहे हम नव पदार्थ जान लें, आचार के क्षेत्र में सम्यग् दर्शन नहीं आएगा। हमारे भीतर यह चेतना जागे-निमित्त निमित्त है, वह कुछ भी कर सकता है, पर मैं अपने उपादान पर ध्यान दूं। यदि उपादान शक्तिशाली है तो निमित्त मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सम्यग दर्शन जितना स्पष्ट और शक्तिशाली बनेगा. साधना की बात समझ में आएगी, आनन्द प्रगटेगा, अखंड सुख और अखंड ज्योति का उद्भव होगा। यदि हम दूसरों के भंवर में उलझे रहे तो सुख, शान्ति और
आनन्द की उपलब्धि नहीं होगी। यह ऐसा भंवर और आवर्त है, जिसका न आर है और न पार। समुद्रपाल के निदर्शन का बोध पाठ यही है-हम अपने उपादान को शक्तिशाली बनाएं। यह बोधपाठ सफल और शांतिपूर्ण जीवन के लिए महामंत्र का काम कर सकता है।
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