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महावीर का पुनर्जन्म
जब तक उपादान है, तब तक पानी और खाद का महत्त्व है। यदि उपादान ही नहीं हैं तो कोई कार्य बनता ही नहीं है। ये सब निमित्त हैं और उपादान के होने पर ही सहायक बनते हैं। समुद्रपाल का निदर्शन
उत्तराध्ययन का इक्कीसवां अध्ययन है, 'समुद्रपालीय'। उसका एक प्रसंग है। वणिक्-पुत्र समुद्रपाल अपने प्रासाद के झरोखे में बैठा नगर की सुषमा को देख रहा था। उस समय उसने एक चोर को देखा। चोर को वध के लिए ले जाया जा रहा था। उसे देख उसका मन वैराग्य से भर गया। उसका मन बोल उठा-अहो! यह अशुभ कर्मों का दुःखद अवसान है
तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी।
अहोऽसुभाण कम्माणं, निजाणं पावगं इम।। । इस घटना ने उसके मन पर गहरा असर किया। वह संसार से विरक्त हो मुनि बन गया। उसे एक चोर से अचौर्य की प्रेरणा मिल गई।
चोर का निमित्त मिला, समुद्रपाल प्रतिबुद्ध हो गया। प्रश्न हो सकता है-पुलिस प्रतिदिन न जाने कितने चोरों को पकड़ती है। उसमें क्या वैराग्य जागता है? वह चोरों को देखती ही नहीं है, मारती-पीटती भी है। न जाने उनके साथ कैसा-कैसा व्यवहार करती है फिर भी उसमें कभी वैराग्य नहीं आता। न्यायाधीश के सामने चोरों को कितनी बार पेश किया जाता है पर न्यायाधीश को वैराग्य नहीं आता।
न्यायाधीश ने चोर से कहा- 'मैंने तुम्हें कितनी बार फटकारा है। तुम मेरे सामने क्यों आते हो?' चोर ने जवाब दिया- 'महाशय! मैं क्या करूं? मैंने पुलिस वालों से कहा-आप मुझे वहां मत ले जाइए, न्यायाधीश महोदय ने मनाही की है। फिर भी वे मुझे यहां ले आते हैं।'
न्यायाधीश चोर को दण्ड देता है, फांसी की सजा सुना देता है। क्या कभी कोई न्यायाधीश वैरागी बना? चोर को देखकर समुद्रपाल वैरागी क्यों बना? हम इस बिन्दु पर चिन्तन करें, यथार्थ का पता चलेगा। निमित्त का अपना स्थान होता है। वह तब कारण बनता है, जब उपादान जाग जाता है। यदि उपादान न जागे, तो निमित्त निमित्त बनता ही नहीं है। एक ही घटना, एक ही तथ्य और सत्य किसी के लिए अच्छाई का निमित्त बन जाता है किसी के लिए बुराई का। बदलता है परिणाम
___ एक व्यक्ति ने कहा- 'अमुक व्यक्ति की कुण्डली में ये नक्षत्र हैं और उसका यह परिणाम है, किन्तु यदि वह चाहे, अपने आपको बहुत शक्तिशाली बना ले तो यह परिणाम नहीं होगा।'
परिणाम को बदला जा सकता है। वह नियत नहीं है, परिवर्तनीय है। वह संभव है उपादान के द्वारा। साधना की सारी पद्धति उपादान को बलवान बनाने की पद्धति है। शब्द, गंध, रस और स्पर्श-सर्वत्र हैं। वे वीतराग को कभी प्रभावित नहीं करते। वे क्यों नहीं प्रभावित कर पाते? यदि वे निमित्त हैं तो सबके
लिए समान होने चाहिए। एक वीतराग भी उनसे प्रभावित होना चाहिए पर वह Jain Education International For Private & Personal Use Only
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