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________________ चौर्य से अचौर्य की प्रेरणा २८३ निमित्त मूल नहीं है __ हम ध्यान दें उपादान कैसा है? निमित्त लंगड़ाता-सा है, वह बहुत थोड़ा काम करता है। हम निमित्त पर न अटकें। उपादान को शक्तिशाली बनाएं। एक प्रश्न है-साधना का प्रयोजन क्या है? साधना क्यों की जाती है? साधना है उपादान को शक्तिशाली बनाने के लिए। हमारा मन, हमारी चेतना और आत्मा शक्तिशाली बने, जिससे निमित्त को ग्रहण ही कम करे। यदि उपादान को शक्तिशाली नहीं बनाया, निमित्त पर ही अटके रहे तो अनन्तकाल तक भी समस्याओं के चक्र से छुटकारा नहीं मिलेगा। हम न निमित्त की उपेक्षा करें और न उन्हें सर्वशक्तिमान मानें। वे सब कुछ नहीं हैं। हमें द्रव्य और क्षेत्र प्रभावित करते हैं, काल और भाव प्रभावित करते हैं। ये सब हमें प्रभावित करते हैं किन्तु सिद्ध आत्मा को ये प्रभावित नहीं करते। जहां मुक्त आत्मा है, वहां क्या हवा नहीं है? पृथ्वी और पानी के जीव नहीं हैं? पुद्गल नहीं है? वहां भी ये सब हो सकते हैं। पूरा आकाश-प्रदेश पुद्गलों से भरा पड़ा है। एक भी आकाश-प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां पुद्गल न हों पर मुक्त आत्मा इन सबसे प्रभावित नहीं होती। इसका कारण यही है-उपादान निरपेक्ष बन गया, इसलिए वहां निमित्त अकिंचित्कर बन जाते हैं, निमित्त की शक्ति क्षीण हो जाती है। वस्तुतः निमित्त कोई बनता ही नहीं है। द्रव्य द्रव्य है, क्षेत्र क्षेत्र है, काल काल है और भाव भाव है। जिसमें उपादान की क्षमता जाग गई, उसके लिए ये निमित्त बनते ही नहीं हैं। जहां उपादान प्रबल नहीं होता, वहां निमित्त प्रभावी बन जाते हैं। निमित्त मूल नहीं है, मूल है उपादान। आदमी ने देखा-उद्यान में एक ओर वृक्ष हरे-भरे हैं, दूसरी ओर सूखे हैं। उसने माली से पूछा-'भाई! क्या बात है? एक ओर पेड़-पौधे हरे-भरे हैं, फल-फूल से लदे हुए हैं, दूसरी ओर बिल्कुल शुष्क पड़ा है। क्या तुमने इस ओर ध्यान नहीं दिया?' 'महाशय! मैंने ध्यान तो दिया पर क्या करूं? एक दुर्घटना घट गई।' 'क्या दुर्घटना घटी?' 'मुझे किसी कारणवश बाहर जाना पड़ा। मैंने छोटे लड़के से कहा-'तुम बगीचे का पूरा ध्यान रखना। वह उसमें प्रतिदिन पानी सींचने लगा। एक दिन उसके मन में विकल्प उठा-ये पौधे छोटे हैं और ये पौधे बड़े हैं। सब पौधों की ऊंचाई समान नहीं है और मैं सबको बराबर पानी दे रहा हूं। सबको समाने देने का मतलब क्या है? मुझे यह बेवकूफी नहीं करनी चाहिए। जिसकी जड़ जितनी बड़ी है, उसको उतना ही पानी देना चाहिए। उसने सोचा-पेड़ों की जड़ का पता लगाना होगा। उसने जड़ की खुदाई शुरू कर दी, जड़ को नापना शुरू कर दिया। खुदाई कर उसने सारे पेड़ों को उखाड़ दिया, सबकी जड़ें नाप ली। एक चार्ट बना लिया—इस पौधे की इतनी बड़ी जड़ है और इस पौधे की इतनी बड़ी है। उसने उस चार्ट के हिसाब से पौधों को पानी देना शुरू किया किन्तु पौधे सूखते ही चले गए। उसकी बुद्धिमत्ता और विवेक से मूल उपादान ही नष्ट हो गया।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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