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________________ महावीर का पुनर्जन्म २८२ क्षेत्र, काल और भाव को पढ़ा है, वह ज्योतिष में अविश्वास नहीं कर सकता । सौरमण्डल के विकिरण हमें प्रभावित करते हैं । उपादान सापेक्ष है इसलिए हम उनसे प्रभावित होते हैं । यदि उपादान निरपेक्ष हो जाए तो ज्योतिष कोई काम नहीं करेगा। हम नियम को अनिवार्य या एकांगी न मानें। नियम सापेक्ष है । ज्योतिष का उपयोग है भी और नहीं भी । शनि ने शिव से कहा - 'महाराज ! मैं तो सब पर आता हूं आप पर भी आऊंगा। अब मेरी साढ़े साती आने वाली है, आप सावधान रहें ।' शंकर बोले-‘ठीक है, कोई बात नहीं।' शंकर एक गुफा में ध्यान लगाकर बैठ गए । सोचा -- शनि मेरा क्या करेगा? वे एक दिन नहीं, एक वर्ष नहीं, पूरे साढ़े सात वर्ष ध्यान की मुद्रा में बैठे रहे । साढ़े सात वर्ष पूरे हुए । शनि शंकर के पास आया । शंकर को प्रणाम करते हुए शनि ने कहा - 'महाराज ! मैं अब जा रहा हूं ।' शंकर ने कहा—‘अरे ! तुम तो कह रहे थे, मैं आऊंगा। तुमने मेरा क्या बिगाड़ा ?' शनि बोला- 'महाराज ! आप साढ़े सात वर्ष तक पत्थर की मूर्ति बने बैठे रहे और मैं क्या करता?' शंकर ने अपना उपादान ऐसा बना लिया, शनि कुछ नहीं कर सका । उपादान को बलवान बनाएं जैन परम्परा के एक आचार्य बहुत बार कहते हैं- 'मैं अपने वर्ष भर का जन्म फल दिखा लेता हूं। जब-जब यह लगता है— मेरा यह समय ठीक नहीं है, तब मैं न बाहर जाता हूं, न व्याख्यान देता हूं। उस समय मैं एकांत में रहता हूं जप, तप, ध्यान आदि करता हूं, मेरा वह समय ठीक चला जाता है।' यह उपादान को बलवान बनाने का उपक्रम है। हम उपादान को बलवान बनाएं। उपादान बलवान है तो कुछ नहीं होगा । ज्योतिषी ने एक व्यक्ति को बताया- तुम्हारे शनि की साढ़े साती आने वाली है। व्यक्ति घबरा गया। उसने पूछा - 'महाराज ! मैं क्या करूं?" ज्योतिषी ने उपाय बताया- 'तुम दान करो।' 'किसका दान करूं?" 'काली भैंस का ।' 'भैंस तो मेरे पास नहीं है ।' 'कोई बात नहीं । तुम तिल का दान कर लो।' 'वह भी नहीं है ।' 'एक काली कंबल दान में दे दो ।' 'कंबल भी मैं नहीं दे सकता।' 'तो तुम एक बोरी कोयले का दान कर दो।' 'मेरा उतना सामर्थ्य भी नहीं है ।' ज्योतिषी ने झिड़कते हुए कहा - 'चले जाओ यहां से । शनि तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा। जो तुम्हारे पीछे निरन्तर लगा हुआ है, वह क्या बिगाड़ेगा?” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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