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महावीर का पुनर्जन्म
पर बैठ गए। वह एक विचित्र घटना है तेरापंथ के इतिहास की। तेरापंथ में नौ आचार्य हुए हैं, उनमें छह युवाचार्य हुए हैं। खेतसीजी स्वामी न तो आचार्य बने और न युवाचार्य बने, पर आचार्य के आसन पर आसीन हो गए। केवल सेवा और विनम्रता के कारण यह सब संभव बना। कृतज्ञता : शिष्ट समाज का उदात्त सूत्र
संबंध स्थापित करने का पांचवां गुर है-कृतज्ञता। यह बहुत बड़ा तत्व है। बहुत लोग ऐसे होते हैं, जिनका कितना भी उपकार करो पर एक बार थोड़ा-सा कुछ हो जाता है तो बिल्कुल कृतघ्न बन जाते हैं, पीछे की सारी बातों को भूल जाते हैं। बीस-तीस वर्ष जिनको पढ़ाया, लिखाया, सिखाया, जिनके लिए सब कुछ किया किन्तु थोड़ी सी प्रतिकूलता आती है तो वे कृतज्ञता को बिल्कुल भूल जाते हैं, कृतघ्न हो जाते हैं, यानी कृत की हत्या कर डालते हैं। यह वृत्ति आदमी को नीचे ले जाने वाली वृत्ति है।
एक चांडालिनी रास्ते पर जल छिड़कती हुई चल रही थी। उसके हाथ में खप्पर था। सिर पर मरा हुआ कुत्ता था। हाथ रक्त से सने हुए थे, वह उन्हीं हाथों से मार्ग पर जल गिराती हुई चल रही थी। एक ऋषि यह दृश्य देखकर विचलित हो उठे। उन्होंने पूछा
कर खप्पर सिर श्वान है, लहुज खरड़े हत्थ।
छिड़कत मग चांडालिनी, ऋषि पूछत है बत्त।। चांडाल पत्नी ने बहुत मार्मिक उत्तर देते हुए कहा
तुम तो ऋषि भोले भए, नहीं जानत हो भेव।
कृतघन की चरण रज, छिटकत हूं गुरुदेव।। ऋषि! तुम भोले हो। तुम रहस्य नहीं जानते। कृतघ्न की चरणरज मुझे न लगे इसलिए मैं मार्ग को छिड़कते हुए चल रही हूं।
कृतज्ञता शिष्ट समाज का एक उदात्त सूत्र है।
स्थविर ने कहा-तुम इन पांच गुरों का प्रयोग करो। तुम्हारा आचार्य के साथ संबंध स्थापित हो जाएगा।
शिष्य के बात समझ में आ गई। उसने कृतज्ञता भरे शब्दों में कहा-भतें! आपने बहुत कृपा की। मैं इनका प्रयोग करूंगा। समस्या गुरु की
___योग ऐसा मिला। स्थविर वहां से उठकर गुरु के पास गए। उन्होंने देखा-गुरु भी चिन्तातुर बैठे हैं। स्थविर ने पूछ लिया-'गुरुदेव! आपके मन में आज चिन्ता का भाव क्यों है?"
गरु बोले-मनिजी! बात यह है-मैंने शिष्यों को दीक्षित किया है पर अभी वे जम नहीं पा रहे हैं, स्थिर नहीं हो पा रहे हैं। उनका स्थिरीकरण नहीं हो पा रहा हैं। यह भी हो सकता है कि मैं उनको ठीक नहीं कर पाया हूं। कोई न कोई कारण अवश्य है। यही बात मुझे चिंतातुर बना रही है। 'इस विषय में आपका परामर्श क्या है?'
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