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________________ ११ संबंधों के आलोक में गुरु और शिष्य उसने मर्म प्रकट करते हुए कहा-'राजन्! मेरे पास दो विद्याएं हैं-उन्नामिनी और अवनामिनी। जब मैं अवनामिनी विद्या का प्रयोग करता हूं तब डालियां नीचे झुक जाती हैं और जब उन्नामिनी विद्या का प्रयोग करता हूं तब वे शाखाएं फिर ऊपर चली जाती हैं। राजन्! मैंने बाहर खड़े-खड़े विद्याओं का प्रयोग किया, डालियां झुक गई और मैंने आम तोड़ लिए।' . राजा ने विस्मय से कहा-'अरे! तुम बड़े चमत्कारी व्यक्ति हो। ये विद्याएं मुझे सिखा दो। मैं तुम्हे माफ कर दूंगा। अन्यथा फांसी की सजा दी जाएगी। 'ठीक है, मैं आपको ये विद्याएं सिखा दूंगा।' राजा अपने आसन पर बैठ गया और हरिकेश को नीचे बिठा दिया। हरिकेश ने विद्याएं सिखानी शुरू की। एक बार, दो बार, चार बार मंत्रविद्या का उच्चारण किया फिर भी राजा को विद्याएं पकड़ में नहीं आई। राजा का मन व्याकुल हो उठा। राजा ने व्यथा भरे स्वरों में कहा-'अभयकुमार ! एक चांडाल को यह विद्या आ गई और मुझे यह विद्या नहीं आ रही है। इसका कारण क्या है?' अभयकुमार बोला-'महाराज! विद्या देने वाला नीचे बैठे और लेने वाला ऊपर बैठे तो विद्या आएगी कैसे? आपमें तो विनय ही नहीं है। महाराज! जब अहंकार दूर होगा तब ही कोई बात बनेगी। जहां अहंकार होता है वहां सारे दरवाजे और खिड़कियां बन्द हो जाती हैं। बाहर से न प्रकाश आता है, न हवा आती है और न सूर्य का ताप आता है।' राजा के बात समझ में आ गई। वह सिंहासन को छोड़कर नीचे बैठ गया। उसने चांडाल को ऊंचे आसन पर बिठाया। चांडाल ने पुनः विद्या दी। राजा को वह विद्या तत्काल सिद्ध हो गई। प्रश्न यह नहीं है-विद्या देने वाला कौन है? विद्या देने वाला छोटा हो या साधारण आदमी, विद्या लेने वाला सम्राट् हो या बड़ा आदमी। यह एक सचाई है-विद्या देने वाला दान के समय ऊंचा होता है, विद्या लेने वाला ग्राहक और ग्रहणशील नीचा होता है। सेवा से सम्मान संबंध स्थापित करने का चोथा गुर है-सेवा। दुनिया में सेवा के समान कोई वशीकरण मंत्र नहीं है। जितने वशीकरण मंत्र हैं, उनमें शक्तिशाली मंत्र है सेवा। हमने देखा एक महिला को। उसे कोई देखे तो शायद दूर भाग जाए। उसका सारा चेहरा सलवटों से भरा पड़ा था। कोई व्यक्तित्व जैसा लगता ही नहीं है पर एक सेवा के कारण उसने संसार भर के बड़े-बड़े सम्मान प्राप्त कर लिए। उसका नाम था मदर टेरेसा। विश्व भर के लोगों को जो बड़े-बड़े सम्मान मिलते हैं, वे उस अकेली ने प्राप्त कर लिये। सेवा का बड़ा मूल्य है। तेरापंथ में एक मुनि हुए हैं खेतसीजी स्वामी। वे बहुत पढ़े लिखे नहीं थे, बहुत विद्वान् नहीं थे, लेखक या कवि नहीं थे, बहुत वक्ता भी नहीं थे। सेवा के कारण उन्हें सम्मान मिला। वे आचार्य के आसन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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