SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० महावीर का पुनर्जन्म विनम्रता : एक कथा विनम्रता एक बहुत बड़ा गुण है। आगम साहित्य के व्याख्या ग्रंथों में कहानी के द्वारा इस तथ्य को समझाया गया है। एक चाण्डाल की पत्नी को गर्भकाल में आम का दोहद पैदा हुआ। जब तक गर्भवती स्त्री का दोहद पूरा नहीं होता, आकांक्षा पूरी नहीं होती, वह सूखने लग जाती है। पत्नी ने अपनी इच्छा पति के सामने रखी। पति ने कहा-'एक तो आम का मौसम नहीं है और फिर हम ठहरे चांडाल। इस स्थिति में आम लाऊं तो कहां से लाऊं।' बड़ी समस्या पैदा हो गई। दोहद की पूर्ति भी आवश्यक और आम का मौसम भी नहीं। उस समय आज का जमाना नहीं था कि आम कभी भी दुनिया के किसी भी कोने से मंगा ले। आखिर खोज करते-करते पता चला-राजा श्रेणिक का एक बगीचा है। वहां आम के कुछ ऐसे पेड़ हैं, जो बारह महीने फल देते हैं। वह चांडाल उस बाग के पास गया। इतने प्रहरी और दुर्लभ आम! बारह महीने राजा को वे आम मिलते थे। कड़ा पहरा था, भीतर जाने का कोई प्रश्न नहीं था किन्तु उसके पास एक ऐसी करामात थी, जिससे वह आम लेकर आ गया। पत्नी का दोहद पूरा हो गया। आम बहुत मीठा था। पत्नी को चस्का लग गया। उसने दूसरे दिन और आम खाने का आग्रह दोहराया। पति ने कहा-'यह क्या धन्धा है ? मेरे से रोज-रोज आम लाना संभव नहीं है।' पत्नी बोली-'नहीं, यह तो लाना ही होगा।' चाण्डाल बेचारा क्या करता। वह दूसरे दिन भी आम लाया, तीसरे दिन भी लाया, चौथे दिन भी लाया। पहरेदार खड़े हैं और पेड़ खाली होते जा रहे हैं। यह देखकर बागवान चिन्तित हुए। राजा को सूचना दी गई। राजा ने इस समस्या को सुलझाने के लिए अभयकुमार से कहा। अभयकुमार बहुत बुद्धिमान् था। उसने सजगता से सारी स्थिति का निरीक्षण किया। वह बाग में होने वाली हलचलों को निरन्तर पढ़ता रहा। ऐसा करते-करते उसने आम तोड़ने वाले व्यक्ति का पता लगा लिया और हरिकेश चांडाल को पकड़ लिया। ___चाण्डाल को राजा के सामने प्रस्तुत किया गया। राजा ने पूछा-'तुमने आम चुराए?' उसने कहा-'बिल्कुल नहीं चुराए।' तर्क की भाषा में बचने का बहुत अवकाश होता है। अभयकुमार ने पूछा-'क्या तुमने आम तोड़े?' 'हां।' 'क्या भीतर गये थे?' 'नहीं भीतर गया ही नहीं था।' 'भीतर नहीं घुसे तो आम तोड़े कैसे?' 'मैने बाहर खड़े-खड़े ही आम तोड़ लिए।' राजा सुनकर स्तब्ध रह गया। राजा ने पूछा 'यह कैसे संभव है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy