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संवाद : नाथ और अनाथ के बीच
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लिए भावों को पढ़ने का अभ्यास करें। उसके बिना यह टकराव शायद कभी मिटने वाला नहीं है।
राजा का अहंकार फुफकार उठा। ढाई हजार वर्ष पहले का जमाना और उस समय का सम्राट! इतना वैभव, इतने बड़े राज्य का स्वामी। इस शब्द को कैसे सहन करता? यदि मुनि के स्थान पर कोई और होता तो उसका आक्रोश न जाने क्या परिणाम लाता? राजा ने सोचा-मुनि का कोई दोष नहीं है : मुझे जानता नहीं है। जब तक परिचय न हो भला कौन क्या करे? यह अपरिचित है इसलिए अनाथ बता दिया। अब मुझे परिचय दे देना चाहिए। आज तो अपना परिचय स्वयं देने की पद्धति चल रही है। राजा ने अपना परिचय देना शुरू कर दिया-'भंते! आप मुनि बन गये पर लगता है आप व्यवहार को नहीं जानते। दुनिया को आपने देखा नहीं है। क्या आपको पता है-मैं कौन हूं? मेरे पास घोड़े हैं, हाथी हैं, आदमी हैं, यह नगर है। मैं बहुत बड़े राज्य का स्वामी हूं। बड़े-बड़े प्रासाद हैं, विशाल अन्तःपुर है। इस राज्य का कण-कण मेरी आज्ञा में है। मैं अनाथ कैसे हुआ? भंते! कम से कम इतना झूठ तो न बोलें? आप एक सम्राट को अनाथ बता रहे हैं। इससे बड़ा क्या झूठ होगा?'
अनाथी मुनि ने यह सुना। वे अपने आप में लीन थे। जो व्यक्ति अपने भीतर की आत्म को, परमात्मा को जगा चुका होता है, वह निःस्पृह होता है। उसके स्पृहा नहीं होती, भय भी नहीं होता। मुनि बोले-'सम्राट श्रेणिक! मैंने तुम्हारा परिचय पा लिया। तुम एक बात ध्यान से सुनो-तुम अभी नाथ का अर्थ नहीं जान रहे हो। बड़े अज्ञानी राजा हो।'
मुनि ने इतने बड़े राजा को अज्ञानी कह दिया, नहले पर दहले जैसा हो गया।
'कौन होता है नाथ?' सम्राट श्रेणिक ने जिज्ञासा की।
'नाथ का अर्थ है-योगक्षेम विधाता। जो योग और क्षेम करने वाला है, वह नाथ है। तुम नाथ का अर्थ भी नहीं जानते और मेरे नाथ बनना चाहते हो। तुमने यह समझ लिया कि मैं गरीब घर का था। रोटियां खाने को नहीं मिलती थीं। घर में कुछ नहीं था। इसलिए मैं साधु बन गया। पर वस्तुतः ऐसा नहीं है।'
आजकल बहुत लोग मिथ्या आरोप लगाते हैं। यह आरोपों की दुनिया है। आरोप से कभी बचा नहीं जा सकता। लोग कह देते हैं ये बहत सारी साध्विया दीक्षित होती हैं। गरीब घरों की होती हैं, इनकी कोई शादी की व्यवस्था नहीं होती। माता-पिता निकाल देते हैं और वे संस्था में भर्ती हो जाती हैं। कैसी विडंबना!
राजा अवाक् रह गया, वह मुनि की तेजस्विता के सामने बोल ही नहीं सका। उसके हाथ जुड़ गये। विनम्र स्वर में प्रार्थना की-'महाराज! मैं नहीं जानता, कृपया आप बतला दें। मैं आपकी अनाथता को जानना चाहता हूं।'
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